नारी का संस्कार केवल उसकी व्यक्तिगत पहचान को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करती है- पूजा ऋतुराज.

विश्वनाथ आनंद ।
पटना( बिहार )-नारी का संस्कार केवल उसकी व्यक्तिगत पहचान को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को प्रभावित करती है। एक संस्कारित नारी अपने परिवार और समाज को उज्ज्वल भविष्य प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए, नारी का संस्कार समाज और परिवार की नींव को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संस्कार का अर्थ है नैतिकता, आदर्श, और सद्गुणों का पालन, जो किसी भी व्यक्ति के चरित्र और व्यवहार को परिभाषित करते हैं। नारी के संस्कार उसकी परवरिश, शिक्षा, और जीवन मूल्यों पर निर्भर करती हैं, जो न केवल उसके व्यक्तिगत विकास में सहायक होती हैं, बल्कि समाज को भी प्रभावित करती हैं।
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नारी के प्रमुख संस्कार
मातृशक्ति का प्रतीक – नारी को बचपन से ही करुणा, प्रेम और सहनशीलता जैसे गुणों को अपनाने की शिक्षा दी जाती है, जिससे वह एक मजबूत एवं संवेदनशील व्यक्तित्व बना सके।
संस्कारों की धारक – नारी परिवार में धार्मिक और नैतिक मूल्यों को संजोने वाली होती है। वह अपने बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों में अच्छे संस्कारों का संचार करती है।
शिक्षा और ज्ञान का महत्व – शिक्षित नारी ही समाज को सही दिशा में ले जा सकती है। ज्ञान और शिक्षा उसे आत्मनिर्भर बनाते हैं, जिससे वह अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहती है।
धैर्य और सहनशीलता – नारी को जीवन में कई कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। संस्कारित नारी धैर्य और सहनशीलता से हर परिस्थिति को संभालने में सक्षम होती है।
सम्मान और आदर – नारी को अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान को बनाए रखना चाहिए। वह जितना स्वयं का सम्मान करेगी, उतना ही समाज भी उसका सम्मान करेगा।
संयम और मर्यादा – नारी के संस्कार उसे मर्यादा में रहकर जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। अपने आचरण, भाषा और व्यवहार में संयम रखने वाली नारी हमेशा आदर और सम्मान प्राप्त करती है।
कर्तव्यपरायणता – नारी अपने परिवार, समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करती है। एक संस्कारित नारी अपने हर दायित्व को निष्ठा और समर्पण के साथ निभाती है।
नारी पर मगही कविता
सृष्टि न नारी बिना, होयत जगत आधार।
नारी के हर रूप के, महिमा बड़ी अपार।।
जे घर में होबे न ,नारी के सम्मान।
त देवी पूजन व्यर्थ हे ,व्यर्थ उहाँ सब दान।।
लक्ष्मी, दुर्गा, शारदा, सब नारी के रूप।
देवी से गरिमा मिले, नारी जन्म अनूप।।
कठिन परिस्थिति में सदा, बने खुद ही ढाल।
नारी बहती हे नदी, जीवन करे निहाल।।
नारी, नारी के ,न देवे कहियो साथ।
येही से उनकर रहल, बस खाली हाथ।।
घर आंगन गेरू से , रखे द्वअरा के लीप।
नारी रंग गुलाल हे, दीवाली के हे दीप।।
खुशि के रखे सँजो, जइसे मोती सीप।
नारी घर के फूल हे, नारी संध्या दीप।।
तार-तार होबीत रहल, तइयो सूर बाहर।
नारी सब पीर सहे, बाँटे केवल प्यार।।
पायल ही बेड़ी बनल, कइसन हे तकदीर।
नारी के क़िरदार बस, फ्रेम जड़ल तस्वीर।।
नारी के अबला समझ, मत कर तू भूल।
नारी इ संसार में, जीवन के हे मूल।।
गुड़िया, कंगन, मेंहदी, नेह भरल बौछार।
बेटी खुशि से करे, घर आँगन गुलज़ार।।
बेटी के नित कोख में, मार रहल संसार।
ऐसे में कइसे मनत, राखी के त्योहार।।
बेटी हरसिंगार हे, बेटी लाल गुलाब।
बेटी से खुशनार हे, दुनो घर के लाज।।
तितली से उन्मुक्त हे, बेटी के उड़ान।
लेकिन कइसे उ जाने, बगिया के सब राज।।
हे सावित्री सती, बनल पत्नी पति के ढाल।
पतिव्रता नारी से अब, घुटने टेके काल।।
नारी मूरत त्याग हे, प्रेम दया के खान।
करे जीवन में सदा, नारी के सम्मान।।
सूना हे नारी बिना, सारा इ संसार।
उ मकान के शोभा है, देबे अप्पना प्यार।।
नारी तू अबला न ह ,स्वयं शक्ति पहचान।
अपने हक ला लड़ अपने, तब होतव उत्थान।।
काहे नारी लाचार हे, लुटत काहे हे लाज।
पुरुष विशेषता विहीन अब, होयल धरती इ आज।।