समाज में महिलाएं पुरुषों को सम्मान अवसर दें, तभी समाज में संतुलन व स्थिरता आएगी-पूजाऋतुराज

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विश्वनाथ आनंद
पटना (बिहार )- समाज में महिलाएं पुरुषों को सम्मान अवसर दें, तभी समाज में संतुलन व स्थिरता आएगी- उक्त बातें समाजसेवी महिला पूजा ऋतुराज ने मीडिया से खास बातचीत के दौरान कहीं. उन्होंने आगे कहा कि नारी सशक्तिकरण का अर्थ महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बनाना है, ताकि वे अपने अधिकारों को पहचान सकें और स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें। किसी भी समाज की संस्कृति में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, और नारी सशक्तिकरण से संस्कृति का भी विकास होता है। उन्होंने आगे कहा कि नारी सशक्तिकरण के पहलूशैक्षिक सशक्तिकरण शिक्षा महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाती है।शिक्षित महिलाएँ अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होती हैं।महिलाओं की शिक्षा से परिवार और समाज भी विकसित होता है। उन्होंने आगे कहा कि आर्थिक सशक्तिकरण महिलाओं को स्वरोजगार, व्यवसाय और नौकरी के अवसर प्रदान करना है. उन्होंने आगे कहा कि आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाएँ समाज में अपनी स्थिति मजबूत कर सकती हैं।सरकार द्वारा महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने की योजनाएँ (जैसे, मुद्रा योजना, महिला स्वयं सहायता समूह)।सामाजिक सशक्तिकरण समाज में महिलाओं को समानता और सम्मान दिलाना।दहेज प्रथा, बाल विवाह, घरेलू हिंसा जैसी सामाजिक बुराइयों का अंत।

महिलाओं की सुरक्षा और आत्मरक्षा के लिए उचित कदम उठाना।राजनीतिक सशक्तिकरणमहिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाना।पंचायतों और संसद में महिलाओं को आरक्षण देना।नीति-निर्माण में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी।संस्कृति और नारी सशक्तिकरण का संबंधसंस्कृति का विकास: जब महिलाएँ शिक्षित और सशक्त होती हैं, तो समाज की सोच और परंपराएँ भी विकसित होती हैं।परंपरा और आधुनिकता का संगम: भारतीय संस्कृति में महिलाओं को देवी का रूप माना गया है, लेकिन उन्हें सम्मान अधिकार देना आधुनिकता का प्रतीक है।महिलाओं की भागीदारी: कला, साहित्य, संगीत, नृत्य और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी संस्कृति को समृद्ध बनाती है।औरसमाज में संतुलन: जब महिलाएँ पुरुषों के सम्मान अवसर प्राप्त करती हैं, तो समाज में संतुलन व स्थिरता आती है।