पालक की खेती करने से हो रही गाढ़ी आमदनी,स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद
संतोष कुमार ।।
प्रखंड क्षेत्र में पालक की खेती करने से अच्छी आमदनी हो रही है।यह एक सदाबहार सब्जी है।सभी जगहों में इसकी खेती की जाती है।पालक आयरन व विटामिन का उच्च स्त्रोत और एंटीऑक्सीडेंट होता है।इसके बहुत सारे सेहतमंद फायदे हैं।यह बीमारीयों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है।यह पाचन के लिए, त्वचा,बाल, आंखों और दिमाग के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।इससे कैंसर-रोधक और ऐंटी ऐजिंग दवाइयां भी बनती है।पालक को मिट्टी की कई किस्मों जो अच्छे जल निकास वाली होती हैं में उगाया जाता है।यह रेतली चिकनी और जलोढ़ मिट्टी में बढ़िया परिणाम देती है।जल जमाव वाली मिट्टी में पालक की खेती करने से बचना चाहिए।इसके लिए मिट्टी का पीएच 6 से 7 होना चाहिए।इसके पत्ते अर्द्ध सीधे और गहरे चमकीले रंग के होते है।बुआई के बाद यह 30 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है।इसकी औसतन पैदावार 125 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।इसमें ऑक्सेलिक एसिड की मात्रा कम होती है।इसके पत्ते हल्के हरे रंग के पतले,लम्बे और संकीर्ण होते है।इसके पत्ते स्वाद में हल्के खट्टे होते है।इस किस्म का तना जामुनी रंग का होता है।इसकी औसतन पैदावार 115 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
इन मिट्टी में पालक की खेती करनी चाहिए
प्रखण्ड के बभनटोली निवासी रंजीत सिंह ने बताया कि वे सालों भर अपने खेतों में विभिन्न प्रकार के साग-सब्जी का उत्पादन करते हैं।उन्होंने कहा कि पालक की खेती के लिए किसान को पहले जमीन को भुरभुरा करने के लिए 3 से 5 बार जोताई करनी चाहिए।खेत जोताई के बाद समिट्टी को समतल कर बैंड तैयार करना चाहिए और बाद में सिंचाई करें।पालक की बीज बुआई के लिए अगस्त से दिसंबर का समय उचित होता है।फसल के बढ़िया विकास और बढ़िया पैदावार के लिए अच्छी तरह से गला हुआ गाय का गोबर 200 क्विंटल,नाइट्रोजन 32 किलोग्राम,70 किलोग्राम यूरिया, फासफोरस 16 किलोग्राम एवं सुपरफासफेट 100 किलोग्राम प्रति एकड़ खेत में डालें।गले हुए गाय के गोबर और फासफोरस की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बीज बुआई से पहले डालें।खेतों में खाद डालने के बाद हल्की सिंचाई करें।बीजों के बढ़िया अंकुरण और विकास के लिए मिट्टी में नमी का होना बहुत आवश्यक है।यदि मिट्टी में नमी अच्छी तरह से ना हो तो,बीज बुआई से पहले सिंचाई करें या फिर बीज बुआई के बाद पहली सिंचाई करें।गर्मी के महीने में 4-6 दिनों के फासले पर सिंचाई करें जबकि सर्दियों में 10-12 दिनों के फासले पर सिंचाई करें।ज्यादा सिंचाई करने से परहेज़ करें।ध्यान रखें की पत्तों के ऊपर पानी ना रहे क्योंकि इससे बीमारी का खतरा और गुणवत्ता में कमी आती है।ड्रिप सिंचाई पालक की खेती के लिए लाभदायक सिद्ध होती है।