11 अगस्त को खुदीराम बोस को शहादत दिवस मनाया जाता है

गजेंद्र कुमार सिंह .

शिवहर —जिले में खुदीराम बोस का 11 अगस्त को शहादत दिवस मनाया जा रहा है। भारत के स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी में खुदीराम बोस को महान क्रांतिकारी में माना जाता है। जो भारत माता आजाद के लिए 19 वर्ष के आयु में फांसी पर चढ़ गया। में से एक के तौर पर जाना जाता है। उनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को हुआ था। उनके पिता त्रैलोक्यनाथ बसु शहर के तहसीलदार थे और मां लक्ष्मीप्रिया देवी एक धर्मनिष्ठ महिला। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनिपुर जिले के बहुवैनी में हुआ था।
खुदीराम बोस पर भगवद गीता के कर्म अध्याय का गहरा असर था। वह भारत माता को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए थे। 1905 में बंगाल के विभाजन की नीति से असंतुष्ट होकर उन्होंने जुगांतर की सदस्यता ले ली थी। यह संगठन क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देता था। 16 साल के किशोर वय में बोस ने पुलिस स्टेशन के पास बम फेंके और सरकारी अधिकारियों को निशाना बनाया। सिलसिलेवार बम धमाकों के सिलसिले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था।
मुजफ्फरपुर, बिहार में 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने चीफ प्रेजिडेंसी मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या की योजना बनाई थी। ऐसा माना जाता था कि मजिस्ट्रेट क्रांतिकारियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के खिलाफ ही फैसला सुनाता है। बोस और चाकी ने किंग्सफोर्ड की बग्गी का यूरोपीय क्लब के गेट के सामने आने तक इंतजार किया। फिर उसे उड़ा दिया। लेकिन उसमें किंग्सफोर्ड नहीं था। उसके बजाय मिसेस कैनेडी और उनकी बेटी उसमें सवार थी, जिसकी हादसे में मौत हो गई थी। दोनों क्रांतिकारी उस जगह से भाग निकले थे। बाद में प्रफुल्ल ने तो आत्महत्या कर ली थी, जबकि खुदीराम गिरफ्तार हो गए थे।

क्रांति के रास्ते में प्रेरणा –

जन्म से ही खुदीराम बोस में क्रांतिकारी के गुण दिखने लगे थे। जन्म से ही खुदीराम बोस को जोखिम भरे काम पसंद थे। जन्म से ही उनके चेहरे पर अपार साहस छलक रहा था। स्वाभाविक रूप से ही वे राजनैतिक संघ के एक महान नेता थे।
1902-03 में ही खुदीराम बोस ने आज़ादी के संघर्ष में हिस्सा लेने की ठानी। उस समय लोगो को ब्रिटिश कानून के विरुद्ध प्रेरित करने के लिए श्री औरोबिन्दो और भगिनी निवेदिता वही पर थे। वे उस समय के सबसे छोटे क्रांतिकारी थे जिनमे कूट-कूट कर उर्जा भरी हुई थी। उन्होंने तामलुक के एक विद्यार्थी क्रांति में भी हिस्सा लिया। श्री औरोबिन्दो से प्रेरित होकर, वे श्री औरोबिन्दो और भगिनी निवेदिता के गुप्त अधिवेशन में शामिल हुए।
कुछ समय बाद ही सन 1904 में तामलुक से खुदीराम मेदिनीपुर गये जहा सिर्फ उन्होंने मेदिनीपुर स्कूल में ही दाखिला नही लिया बल्कि शहीदों के कार्यो में भी वे शामिल हुए। और क्रांतिकारियों को सहायता करने लगे।
उस समय वे शहीद क्लब के एक मुख्य सदस्य बन चुके थे, जो पुरे भारत में प्रचलित था। उनकी राजनैतिक सलाह, कुशल नेतृत्व की सभी तारीफ करते थे। अपने इन्ही गुणों की वजह से वे केवल मेदिनीपुर में ही नही बल्कि पुरे भारत में प्रचलित थे। बोस अपने जीवन को समाजसेवा करने में न्योछावर करना चाहते थे। खुदीराम बोस को भगवद्गीता और अपने शिक्षक सत्येन्द्रनाथ बोस से भी प्रेरणा मिलती थी।
सन 1905 में ब्रिटिश सरकार को अपनी ताकत दिखाने के लिए वे एक राजनैतिक पार्टी में शामिल हुए और इसी साल वे बंगाल विभाजन में भी शामिल हुए। कुछ महीनो बाद ही मेदिनीपुर के के पास ही खुदीराम भारत के स्वतंत्रता स्वतंत्रता सेनानी में खुदीराम बोस के क्रांतिकारी के रूप में जानने लगा है।उनका जन्म: 3 दिसंबर, 1889, हबीबपुर, मिदनापुर ज़िला, बंगाल मैं हुआ था। उनका शहादत 11 अगस्त, 1908, मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल में अंग्रेजों द्वारा फांसी दिया गया उसी दिन से उनको शहादत दिवस मनाया जाता है।
कार्य: भारतीय क्रन्तिकारी भारत के स्वाधीनता संग्राम का इतिहास महान वीरों और उनके सैकड़ों साहसिक कारनामों से भरा पड़ा है। ऐसे ही क्रांतिकारियों की सूची में एक नाम खुदीराम बोस का है। खुदीराम बोस एक भारतीय युवा क्रन्तिकारी थे जिनकी शहादत ने सम्पूर्ण देश में क्रांति की लहर पैदा कर दी। खुदीराम बोस देश की आजादी के लिए मात्र 19 साल की उम्र में फाँसी पर चढ़ गये। इस वीर पुरुष की शहादत से सम्पूर्ण देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी। इनके वीरता को अमर करने के लिए गीत लिखे गए और इनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। खुदीराम बोस के सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जो बंगाल में लोक गीत के रूप में प्रचलित हुए।

 

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