फिर एक अनाथ को मिला अखिलेश का सहारा अपने माता-पिता के छाया से वंचित प्रिंस मैट्रिक तक कर सकता है पढ़ाई
चंद्रमोहन चौधरी,
बिक्रमगंज- अनाथों के खोए बचपन और उनकी गुम हो चुकी होठों की मुस्कान को लौटाने की दिशा में द डिवाइन पब्लिक स्कूल के संचालक अखिलेश कुमार बिक्रमगंज और आसपास के क्षेत्रों में एक प्रख्यात व्यक्ति हैं। अनाथों को उज्ज्वल भविष्य देने के अपने संकल्प की सिद्धि की दिशा में आगे बढ़ते हुए पुनः उन्होंने एक अनाथ बालक को अपनाया। बिक्रमगंज प्रखंड के कझाईं निवासी प्रिंस कुमार के माता -पिता की वर्ष 2022 असामयिक मृत्यु हो गई। पिता स्व.-धीरज पासवान लुधियाना में एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करते हुए अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। किंतु अचानक उनकी तबियत खराब रहने लगी। पहले तो इस पर ध्यान नहीं दिया बाद में एक दिनों में स्थिति बिगड़ने पर पटना पी एम सी एच भर्ती कराया गया। जहां इलाज के दौरान वर्ष 2022 के जून महीने में उनकी मृत्यु हो गई। अपने पीछे पत्नी एक पुत्र और एक पुत्री को छोड़ गए। प्रिंस की माता संगीता कुंवर इस घटना के बाद शोक में रहने लगी।पति की असामयिक मृत्यु से आहत होकर 6 महीने बाद हृदयाघात से उनकी भी मृत्यु हो गई। इस प्रकार 13 वर्षीय प्रिंस के सर से माता-पिता दोनों का साया उठ गया। प्रिंस के सामने अपनी पढ़ाई छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। लेकिन विधाता अगर एक मार्ग बंद करता है तो कोई अन्य मार्ग खोल देता है। उसने अनाथों के नाथ के नाम से विख्यात शाहाबाद के प्रख्यात शिक्षाविद और समाजसेवी अखिलेश कुमार का नाम सुना था।अपने स्वर्गीय पिता के अन्य भाइयों के परिवार के साथ वह रह रहा था।परिवार वालों को उसने अखिलेश कुमार के बारे में बताया और अपनी शिक्षा पूरी करने की लालसा प्रकट की। प्रिंस की सूचना के आधार पर उसके नाना दिनारा प्रखंड के गौरा निवासी बबन पासवान द डीपीएस जाकर प्रिंस की मुलाकात अखिलेश कुमार से करवाई। अखिलेश कुमार ने बिना देरी किए सहर्ष उसे अपनाया।प्रिंस का नामांकन कक्षा तीन में हुआ है। विद्यालय के छात्रावास में रहते हुए अब वह दसवीं तक निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करेगा। विदित हो कि द डीपीएस संचालक अखिलेश कुमार अब तक दो दर्जन से अधिक अनाथ बालकों को निःशुल्क शिक्षित एवं उनकी परवरिश कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अनाथों की पीड़ा को मैंने नजदीक से महसूस किया है। बचपन में अपने पिता को खोने के बाद ऐसा महसूस हुआ मानों मेरा अस्तित्व शून्य हो गया। पिता की छाया एक संबल एक आधार होती है। जिसमें बालक का बचपन पलता और बढ़ता है। लेकिन पिता का साया सर से उठ जाने के बाद बचपन कहीं खो जाता है। बालक अस्तित्वहीन हो जाता है। अखिलेश ने कहा कि मैंने ऐसे बालकों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने, उन्हें शिक्षित करने एवं आदर्श नागरिक बनाने का प्रण लिया है। यह जानकर संतोष होता है कि मेरी इस मुहिम से अनेक बालकों के जीवन से अंधियारा दूर हुआ है और उन्हें जीवन की नई रौशनी मिली है। उनके बचपन को खिलखिलाने का कोई नया मौका मिला है।