राजभाषा की बेड़ी तोड़ हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाएं सरकार
गजेंद्र कुमार सिंह ।
– सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है हिंदी
शिवहर—– हिंदी को समृद्धशाली एवं संपन्न बनाने के लिए हमारा कर्तव्य है कि उदार दृष्टिकोण अपनाएं। व्याकरण के नियमों को सुगम बनाते हुए हिन्दी के द्वार प्रांतीय भाषाओं के शब्दों के लिए खोल दें। सरकार को चाहिए कि मौजूदा सरकार हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा अविलंब प्रदान करे। उक्त बातें हिन्दी दिवस पर हुई कवियों की जुटान में कवि देशबन्धु शर्मा ने कही। मुख्यालय स्थित सरस्वती अध्ययन केंद्र में हिंदी दिवस पर कवि सम्मेलन सह परिचर्चा का आयोजन किया गया। अध्यक्षता राजेन्द्र सिंह पवधारी ने की वहीं संचालन मोहन फतहपुरी ने किया। प्रथम चरण में हिन्दी का अतीत एवं वर्तमान पर चर्चा की गई। मौजूद कवियों ने कहा कि आजादी के सात दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी हमारी हिन्दी अभी वह स्थान नहीं पा सकी है ।
जिसकी वह उत्तराधिकारी है। अंग्रेजी के प्रति मोह ने हमें मानसिक रूप से गुलाम बना रखा है। हालांकि बीते कुछ वर्षों में हिन्दी के पक्ष में कुछ सकारात्मक कार्य अवश्य हुए हैं मसलन सरकारी दफ्तरों, न्यायालय सहित प्रतियोगिता परीक्षा में हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ी है किन्तु अभी राष्ट्रभाषा का पद मिलना बाकी है इसके लिए भी आंदोलन होना चाहिए। जिस देश की राष्ट्रभाषा समृद्ध होगी वह देश समृद्ध होगा। दूसरे चरण में कवि सम्मेलन का सत्र चला जिसमें कवि राजेन्द्र सिंह पवधारी, बैद्यनाथ शाहपुरी, मोहन फतहपुरी, देशबन्धु शर्मा, रानी गुप्ता, कवि संजय कुमार, मंजुली शर्मा सहित अन्य कवियों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।