लू लगने का कारण बचाव और आयुर्वेदिक चिकित्सा-डाॅ.विवेकानंद मिश्र
विश्वनाथ आनंद ।
गया (बिहार)-लू पश्चिम से चलने वाली धूल भरी तेज और गर्म हवा जो उत्तर भारत से पाकिस्तान के मैदानी क्षेत्र से चलने वाली हवा को कहते हैं. जिसे बोलचाल की भाषा में हम पछेआ हवा कहते हैं. यह मई जून के महीने में विशेष रूप से मजबूत होने के कारण जन- जीवन पर विशेष असर डालती है, कहर ढाती है. इसके प्रारंभिक लक्षण में सिर में दर्द उल्टी चक्कर तेज बुखार अधिक पसीनेआना इसके मुख्य लक्षण हैं. इसका मुख्य कारण शरीर में नमक और पानी का अभाव है. लू से बचाव के अनेक उपाय हैं. जिनमें मौसमी फल जैसे खीरा ककड़ी तरबूज टमाटर नींबू विशेषतः कच्चे प्याज का प्रयोग खाने में अधिक करना चाहिए यह लाभदायक है.
लू लगने पर सर्व सुलभ घरेलू आयुर्वेदिक उपचार ही अत्यंत कारगर सिद्ध होते हैं, जैसे आधे चम्मच सौंफ को पानी या धनियां को पानी में फुला कर पीसकर मिश्री के साथ शरबत या धनिया और पुदीने का रस एक-एक चम्मच तीन बार पीने से लूं से निजात पाई जा सकती है. खासकर दोपहर में बाहर निकलने वाले व्यक्ति को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए निकलने से पहले मोटे सूती कपड़े का प्रयोग तौलिया गिला कर सर पर रखना लाभदायक है.आयुर्वेदिक उपचार , चिकित्सा- चंदनासव दो- दो ढक्कन दो बार बराबर पानी में मिलकर भोजन के तुरंत बाद लेना हितकारी है.गिलोय घनवटी दो- दो गोली दो बार बुखार रहने पर – महासुदर्शन घनवटी दो दो गोली दो बार नाश्ते के बाद .अमृतारिष्ट दो ढक्कन और दो ढक्कन पानी मिलाकर खाने के बाद. मेहंदी के जड़ का जरा सा छाल और साथ में खस के जड़ को पानी में पीसकर पिलाना चाहिए. उक्त जानकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष आयुर्वेद रक्षा एवं विकास संस्थान के डॉक्टर विवेकानंद मिश्रा ने मीडिया से खास बातचीत के दौरान कहीं .