वृद्धावस्था जीवन की औसत काल होता है- पूजा ऋतुराज
विश्वनाथ आनंद ।
पटना( बिहार- )- वृद्धावस्था जीवन की उस अवस्था को कहते हैं ,जिसमें मानव जीवन की औसत काल होता है*जब पुरूष और औरत विवाह रुपी सामजिक परम्परा में एक दुसरे से जुड़ते हैं. तो वो पूरा जीवन एक दुसरे के प्रति समर्पित कर देते हैं.छोटी सी परिभाषा है कि जीवन साथी की,तुम शब्द मैं अर्थ, तुम बिन मैं व्यर्थ।इस सफ़र के अन्तिम छोर पर जीवन साथी की जरूरत पड़ती तो है क्योंकि सुख दुःख बाँटने वाला उसके सिवाय कोई दूसरा हो ही नहीं सकता। लेकिन वहाँ तक जीवन-साथ बचता नहीं है। दोनों पहिया में से किसी एक पहिया अकेले बच जाता है इसकी कोई उम्र तय नहीं होती यह अचानक घटित होता है और बीच पड़ाव पर जीवनसाथी का जाना बहुत ही कष्टदायक होता है
वृद्धावस्था में जीवनसाथी का बहुत महत्व है। जरूरी है एक साथ रहना ऐसे तो कहें कि जरूरी कुछ भी नहीं, नहीं तो ज़रूरी सब कुछ है।यह इंसान की सोच पर निर्भर करता है कि उसके लिए क्या जरूरी है क्या नहीं। कितने जीवनसाथी का जीवन भर झगड़ाही में गुजर जाता है और प्रेम रहता ही नहीं कितने अपने जीवनसाथी को छोड़ किसी और के जीवन साथी पर डोरा डालते हैं और उनको उसी में आनंद का जीवन एहसास होता है अपने जीवनसाथी का जीवन कष्ट दायक कर देते हैं इसमें उनका कुछ समझ नहीं आता ऐसे लोग अय्याशी किस्म के होते हैं इसमें अब पुरुष ही नहीं महिलाएं भी फैशन बना ली है कई जीवनसाथी अपने शादीशुदा जीवन के अधूरा जीवन में ही तलाक दे देते हैं या छोड़ देते हैं, इंसान में अब इंसानियत खत्म होते जा रही है कोई भी तलाक सुदा पुरुष या महिला ऐसे में अपने पूरे जीवन के बारे में सोचे और परिस्थिति के अनुरूप जो सही लगे वहीं करें ।
आज की स्थिति में बुजुर्गों की उपेक्षा और बदहाली किसी से छिपी नहीं है। परिवार में सब कोई रहते हुए भी बुजुर्गों को काफी कष्ट से गुजरना पड़ रहा है बच्चों को तो सिर्फपैसा-जायदाद सब कुछ चाहिए, लेकिन देखभाल/सेवा किसी को नहीं करनी है।ऐसे में अपनी मेहनत की कमाई से अपने भविष्य को देखते हुए उम्र दराज कोई व्यक्ति पुरुष हो या महिला शादी करना चाहे या कर लें तो कोई बुराई नहीं है।वो समाज जो उनके ऊपर उंगली उठाने को खड़ा है वो खुद अपने अंदर झांके कि कमी कहाँ है? अगर कमी नहीं है तो ये स्थिति क्यों आई? समाज या परिवार आज बुजुर्गों से दूर भागते जा रहे हैं ऐसे में बुजुर्ग अपने जीवन के बारे में जरूर सोचें,बाकी सबकुछ होते हुए भी बुजुर्गों को खुद को बदहाल होने से बचाना चाहिए। साथ की जरूरत सबको होती है। अपने बच्चे/परिवार साथ नहीं दे रहें तो जो सही लगे वो ही करें। जीवन का अंतिम पद व वृद्धावस्था बहुत कष्टदायक हो जाता है जब अपने परिवार वाले देखभाल नहीं करते ऐसे में अगर जीवनसाथी भी ना हो तो और भी जीवन कष्टदायक हो जाता है ऐसे समय आने से पहले अपने परिवार बाल बच्चों को देखते हुए माता-पिता से दूर रहने वाले बुजुर्ग माता-पिता को काफी कष्ट का सहन करना पड़ता है, पैसा रहते हुए भी सेवा नहीं हो पता और देखभाल करने वाले को रखना ही पड़ता है ऐसे में बुजुर्ग महिला- पुरुष को जो सही लगे वहीं करें.