श्राद्धपक्ष में ज्योतिषीय दृष्टीकोण- डॉक्टर ज्ञानेश भारद्वाज

विश्वनाथ आनंद ।
गया( बिहार )- श्राद्ध पक्ष में ज्योतिषीय दृष्टिकोण है . उक्त बातें भेंटवार्ता के दौरान मीडिया से मुखातिब होते हुए डॉ ज्ञानेंद्र भारद्वाज निदेशक भारद्वाज ज्योति शिक्षा शोध संस्थान ने कहीं. उन्होंने आगे कहा कि ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत चारों पुरुषार्थ धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष प्राप्ति की ही चर्चा होती है.श्राद्ध और पिंडदान का संबंध भी मोक्ष से हैं, किंतु हमारे उपनिषदों और धर्म शास्त्र के अनुसार मोक्ष की प्राप्ति तभी होती है जब व्यक्ति समस्त विकारों से रहित होता है.व्यक्ति के भीतर जो विकृतियां आती है उनमें ग्रहों का योगदान भी उल्लेखनीय है. वस्तुतः जो पिंड दान करता है उसे भी विकार रहित होना चाहिए. इस दृष्टि से हम ग्रहों की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं.इतना ही नहीं कहा जाता है की व्यक्ति की अतिरिक्त इच्छाएं उसके मोक्ष में भी बाधा उत्पन्न करती है .

उनके इस दृष्टिकोण से ग्रहों के प्रभाव परिणाम और उन्हें संतुलित करने की विधियों को जानना हर व्यक्ति के लिए अति महत्वपूर्ण है ताकि जीवन में संतुलन बनाया जा सके.इस दृष्टिकोण से ग्रहों के प्रभाव को इस प्रकार देखा जा सकता है .ज्योतिष ईश्वरीय प्रकाश से प्रतिपादित है.वही व्यक्ति के कृत्त कर्मो एवं विचारों के अनुसार हीं फल प्रदान करते हैं . वेद के अंगों में ज्योतिष विराट पुरुष का चक्षु है वही सूर्य है अतएव सृष्टि के सारे कार्यों के आधार ज्योतिष शास्त्र है। इसी क्रम में पितृपक्ष का श्राद्धिक कार्य भी है. विभिन्न शास्त्रों के अवलोकन से स्पष्ट है जैसे :-ग्रहराज सूर्य के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग सर में दर्द, नेत्र से पीड़ा, हृदय रोग और गुर्दा से संबंधित और इनके अन्य दुष्प्रभाव से बचने के लिए घोड़े को चारा, पानी देने से एवं पक्षियों में हंस, बगुला या अन्य पक्षियों के लिए दाना डालें.मन के अधिपति चंद्रमा के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग मन में अशांति कफ से पीड़ित नजला आदि से संबंधित और इनके अन्य दुष्प्रभाव से बचने के लिए मछलियों एवं जल के पक्षियों को दाना . मंगल ग्रह के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग खून की कमी , सुस्त सुस्त रहना सही ऊर्जा के साथ कार्य को नहीं करना एवं चोट चपेट एवं दुर्घटना का भय बना रहना और उनके अन्य दुष्प्रभाव से बचने के लिए चील, गीद्ध , बाज एवं पशु में हाथी को आहार देने से अमंगल मंगल में बदल जाता है.बुध ग्रह के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग पित्त प्रकुपित होना पित्ताशय में पथरी और इनके अन्य दुष्प्रभाव से बचने के लिए कुत्ता ,बकरी ,बंदर व पक्षियों में तोता ,रेंगने वाले जीव के प्रतिनिधि ग्रह बुध हैं अतः इन पशु पक्षियों की सेवा करने से काफी लाभ होता है.बृहस्पति ग्रह के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग चमड़ी से संबंधित रोग होना दाद खाज खुजली पीलिया सोचने समझने की शक्ति कमजोर होना और इनके अन्य दुष्प्रभाव से बचने के लिए हाथी घोड़ा बैल एवं पक्षियों में मोर को दाना और मछलियों को आटे की गोली बनाकर किसी नदी या तालाब में डालें.शुक्र ग्रह के अधिपति माता लक्ष्मी जी हैं। इन के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग शरीर का पतला होना मधुमेह ,स्नायु यौन सुख में कमी धात संबंधित समस्यायें और इनके अन्य दुष्प्रभाव से बचने के लिए गौ माता एवं ब्राह्मण को भोजन कराएं। और गौरैया पक्षी के लिए दाना पानी का व्यवस्था अपने घर के छतया आंगन में करना चाहिए.शनि ग्रह के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग गठिया संबंधित वायु प्रकोप और इनके अन्य दुष्प्रभावों से बचने के लिए काले कुत्ते को खोवा या दूध से बनी सामग्री खिलाना चाहिए.एवं पक्षी में काग बली कराने से शनि का क्रूर प्रभाव नष्ट हो जाता है. राहु केतु ग्रह के दुष्प्रभाव से होने वाले रोग भ्रम भटकाव, द्वंद की स्थिति बना रहना डरे सहमे से रहना पेट से संबंधित रोग होना (केतु- मुंह ,दांत से संबंधित )और इनके अन्य दुष्प्रभाव से बचने के लिए कुत्ते के लिए रोटी काली चिटियों के लिए आटा शक्कर मिलाकर डालें. इससे भ्रम और भरमाव की स्थिति खत्म हो जाती है. इन मास में पीपल का वृक्ष लगाने से नवग्रहों की पीड़ा का प्रभाव कम होता है. श्राद्ध मास में किसी भी प्रकार के शुभ कार्यों को वर्जित कर देनी चाहिए.ज्योतिषी अवधारणा ब्रह्मांड नियंता परमेश्वर ने संपूर्ण प्राणियों के व्यापक हित कल्याण के लिए सृष्टि में सारे जीव जंतु पर्यावरण और प्रकृति का उपहार भेंट किया है. इन सभी का जीवन एक दूसरे से जुड़ा है यही कारण है कि कुछ बदलाव उथल-पुथल या कोई प्राकृतिक आपदा आने वाली होती है तो पेड़ पौधे से लेकर पशु पक्षी के द्वारा उसका संकेत मिल जाता है। इसलिए इनकी रक्षा करना मानवीय धर्म है.

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