जहानाबाद आर्य समाज स्थापना दिवस सह संस्कार शिविर का आयोजन

रजनीश कुमार ।

जहानाबाद दिन बुधवार को प्रातः 8:00 बजे से स्थानीय आर्य समाज मंदिर जहानाबाद में आर्य समाज स्थापना दिवस एवं नव वर्ष विक्रमी संवत् 2080 के अवसर पर वैदिक महायज्ञ‌ सह संस्कार शिविर का आयोजन किया गया जिसमें 11 बालिका – बालक, स्त्री – पुरुषों का उपनयन संस्कार कराकर यज्ञोपवीत (जनेऊ) दिया गया। इस वैदिक महायज्ञ का आयोजन प्रोफेसर प्रकाश चंद्र आर्य के आचार्यत्व में कराया गया इस अवसर पर 11 बालक – बालिकाओं, स्त्री – पुरुषों का उपनयन संस्कार करा कर उन्हें यज्ञोपवित दिया गया। इसके साथ ही उन्हें प्रतिज्ञा कराया गया कि वह जीवन पर्यंत मांसहार, मदिरा अर्थात शराब का सेवन नहीं करेंगे, साथ ही किसी भी प्रकार का नशा का सेवन भी नहीं करेंगे एवं समाज में ऐसा करने वालों को इसे छोड़ने के लिए प्रेरित करेंगे एवं समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न करेंगे। सभी से प्रीति पूर्वक व्यवहार करेंगे। यज्ञोपवित के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य मात्र को यज्ञोपवीत पहनने और वेद पढ़ने का अधिकार है इसमें स्त्री – पुरुष, जाति का भेद नहीं है। स्वामी दयानंद ने 1875 में इसी के लिए आर्य समाज की स्थापना की समाज में सबको बराबरी का अधिकार मिले एवं कुरीतिया, ढोंग पाखंड समाप्त हो। यज्ञोपवित के तीन धागे ऋषि ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण का द्योतक है। ऋषि ऋण जो गुरु शिक्षक से हम ज्ञान प्राप्त करते हैं। ऋषि महर्षि जैसे महर्षि पतंजलि, महर्षी पाणिनी, महर्षि सुश्रुत, महर्षि दयानंद के पुस्तक से हम ज्ञान प्राप्त करते हैं। उसे आने वाली पीढ़ी को शिक्षा देकर ही ऋषि ऋण को चुकाने का एकमात्र तरीका है। यज्ञोपवित का पहला धागा हमें यही याद दिलाता है। यज्ञोपवीत का दूसरा धागा पितृ ऋण का द्योतक है। जिसमें जो हम अपने माता-पिता, दादा-दादी से हम जो प्राप्त किए हैं। और जो ऋण उनका हमारे ऊपर है। उसे चुकाने के लिए हम उनकी सेवा करें एवं आने वाली पीढ़ी को, जो हमें प्राप्त हुआ है। उससे भी ज्यादा प्रदान करें, यही पितृ ऋण को चुकाने का तरीका है, यज्ञोपवीत का दूसरा धागा हमें यही याद दिलाता है। यज्ञोपवीत का तीसरा धागा देव ऋण अर्थात जो देवता है। जो हमें साक्षात रूप से देते हैं बदले में हमसे कुछ लेते नहीं हैं। जैसे सूर्य, वायु, जल, पृथ्वी, अग्नि, इत्यादि जैसे वायु को हम श्वास के माध्यम से ग्रहण करते हैं अगर हम वायु को प्रदूषित करेंगे तो श्वास, प्राण वायु कैसे लेंगे। जल को प्रदूषित करेंगे तो हम क्या पियेंगे ।इसलिए इन सबों को सुरक्षित रखना भी हमारी जिम्मेदारी है तीसरा धागा हमें यही याद दिलाता है। यज्ञोपवीत धारण कर लोगों ने कहा कि वो जीवन पर्यंत इसका हम पालन करेंगे एवं सभी प्रकार के सामाजिक कुरीतियां अज्ञानता को दूर करेंगे, साथ ही समाज में जो पिछड़े हुए लोग हैं उनकी शिक्षा देने का कार्य करेंगे। इस अवसर पर सुश्री अमृता कुमारी सुश्री मोनी कुमारी सुश्री चांदनी कुमारी सुश्री सानिध्या नंदा, वेद प्रकाश, महेंद्र प्रसाद एवं उनकी पत्नी, राकेश कुमार, विनोद चंचल, डॉक्टर संतोष सहित 11 लोगों का उपनयन संस्कार हुआ। इस अवसर पर ईश्वर के सच्चे स्वरूप की व्याख्या करते हुए प्रोफ़ेसर प्रकाश ने बताया कि ईश्वर सच्चिदानंदस्वरुप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वआधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांन्तर्यामी, अजर अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टि करता है उसी की उपासना करने योग्य है। तथा हम सब मनुष्यों को सब काम धर्मानुसार अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करना चाहिए। धर्मानुसार कहने का तात्पर्य है कि जो जैसा है उसको वैसा ही जानना वैसा ही मानना और उसको वैसा ही व्यवहार में लाना जैसे पुस्तक का धर्म है कि उसे हम पढ़ कर के ज्ञान का अर्जन करें और उसे अपने आचरण में धारण करें । पुस्तक की पूजा करने से हमें ज्ञान में वृद्धि नहीं होगी, इसलिए प्रत्येक कार्य को धर्मानुसार करना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में सब लोगों ने आर्य समाज स्थापना दिवस एवं वैदिक नववर्ष की शुभकामनाएं एक दूसरे को दी । अंत में शांति पाठ एवं वैदिक ध्वनि ओ३म् के उच्चारण के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया। इस कार्यक्रम के मुख्य आयोजक प्रोफेसर प्रकाश चंद्र आर्य तथा इसके मुख्य सहयोगी अजय कुमार, प्रधान आर्य समाज जहानाबाद, विनोद चंचल, श्रीमती पूनम जी, अनिल आर्य,गुलाब प्रसाद आर्येन्दु जी रहे। इस कार्यक्रम में सैकड़ों लोगों ने भाग लेकर अपने आपको धन्य होने की अनुभूति प्राप्त की एवं प्रेरित होकर वो और अपने बच्चों को उपनयन संस्कार कराने का अनुरोध किया।