हिंदुओं का आस्था का केंद्र बना केसपा के तारा मंदिर

विश्वनाथ आनंद ।
टेकारी (गया बिहार)- नवरात्र हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है.आजदेश भर मेंशारदीय नवरात्र उत्साह एवं भक्ति भाव के साथ प्रांरभ किया गया है.नवरात्र एक संस्कृत शब्द है,जिसका अर्थ होता है,” नौ रातें “. इस नौ रातें और 10 दिनों के दौरान, शक्ति की देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, और एवं दशवें दिन दशहरा का त्यौहार पूरे हर्ष -उल्लास के साथ मनाया जाता है. दशहरा को असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है,इसलिए इस त्यौहार को विजयादशमी भी कहते है.कई स्थानों पर रावण वध का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के दौरन नौ देवियों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी,चंद्रघंटा, कुष्मांडा,स्कंदमाता,कात्यायनी, महागौरी व सिद्धिदात्री की पूजा -अर्चना किया जाता है. देवी का हर रूप नारी शक्ति का संदेश देता है,इसलिए नवरात्र के दौरान कन्या पूजन का भी विधान है.सभी लोग लड़कियों को अपने घर बुलाते है, उनके पांव पूजे जाते है, उन्हें भोजन कराते है, उपहार देते है, और बदले में उनसे आर्शीवाद प्राप्त करते है.नारी शक्ति के प्रतीक का इससे बड़ा त्योहार पूरी दुनिया में दूसरा कोई नही है, लेकिन यह आश्चर्य का विषय है कि जिस देश मे नवरात्र जैसा त्योहार मनाया जाता हो,वँहा महिलाओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में बढ़ोत्तरी क्यो हो रही है ? जो सच्चे मन से नवरात्र पूजा करते है, वो कभी भी महिलाओं का अपमान नही कर सकते है.

गांव से लेकर शहरों तक बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं, जिनमें माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित किया जाता है, जिसे दशहरा के बाद विसर्जित किया जाता है.नवरात्र हमारे जीवन में प्रकृति का संदेश लेकर आती है.नवरात्र हमें वर्षा ऋतु के समापन एवं शरद ऋतु के आगमन का संदेश देती है.नवरात्र के दौरान हमारा शरीर शरद ऋतु को सहने के लायक तैयार हो जाता है.नवरात्र के प्रकृति संदेशों को समझते हुए हमें उनका अनुसरण करना चाहिए.नवरात्र के संदेशों को पूरी दुनिया में पहुँचाने की आवश्यकता है.टिकरी प्रखंड से 11 किलोमीटर उत्तर दिशा में अलीपुर थाना क्षेत्र अंतर्गत सांसद आदर्श ग्राम केसपा गांव में लोक आस्था का महाकेंद्र माँ तारा देवी मंदिर स्थित है. प्राचीन कल में इसी स्थान पर महर्षि कश्यप का आश्रम था, एवं उन्हीं के नाम पर इस स्थल का नाम कश्यपपुरी कहलाया, जो कालांतर में अपभ्रंश होकर केसपा के नाम से जाना जाता है.मान्यता है कि महर्षि कश्यप ऋषि के द्वारा ही माँ तारा देवी मंदिर का निर्माण कराया गया था,और आज भी उसी पुराना मंदिर में माँ तारा देवी विराजमान है.माँ तारा देवी की उत्पत्ति-जब देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन प्रारंभ किया और भगवान कच्छप के एक लाख योजन चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूमने लगा,तब सबसे पहले समुद्र मंथन से  हलाहल विष निकला.उस विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे, उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी और मूर्क्षित होने लगे थे.इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना किया. उनकी प्रार्थना पर महादेव जी उस विष को हथेली पर रख कर जन कल्याण हेतु  पी गये, किन्तु उन्होंने उस विष को कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया. उस विष के प्रभाव से शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया और वह अर्ध निद्रा में चले गए. भगवान शिव की अवस्था को देखकर पुरे जगत में चारों ओर हाहाकार मच गया , तभी माँ तारा प्रकट हुईं,एवं एक छोटे बालक की तरह महादेव को गोद में उठा लिया.फिर माँ तारा ने महादेव को अपना दूध पिलाया.दूध पीते ही महादेव की अर्ध निद्रा टूट गई और महादेव ने माँ तारा को प्रणाम किया. इस तरह माँ तारा देवी महादेव शिव शंकर की माँ हो गईं,तभी से तीनों लोकों में माँ तारा  देवी की पूजा आरंभ हो गई.मंदिर परिसर में एक त्रिभुजाकार विशाल हवन कुण्ड है, जिसमें सालों भर आहुति डाली जाती है. माँ तारा का यह हवनकुंड कभी नहीं भरता। इस हवनकुंड से आज तक कभी राख कभी निकाली गई है. आज के वैज्ञानिक युग में यह हवन कुंड अपने आप में कई अलौकिक रहस्य को छुपाए हुए है.इस मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है.शारदीय व वसन्तीय नवरात्र के दौरान इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु माता का दर्शन करने आते है.नवरात्र में माँ तारा देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस अवसर पर श्रद्धालुओं व भक्तजनों द्वारा देवी के समक्ष घी के दिए जलाते हैं जो नौ दिन तक अनवरत जलता रहता है.

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