वैश्य समाज के कुछ जातियों को छोड़ तमाम जातियों को अलग कोड क्यों दिया गया
संजय वर्मा।
अब जबकि हर जातियों उपजातियों की गिनती हो रही उन्हें अलग कोड दिया गया है तो सवाल है वैश्य संगठन और उनके स्वयम्भू नेताओं की जरूरत क्या रह गई जो वैश्य समाज के नाम पर अलग अलग दुकाने सजाकर बैठे है जो छप्पन जातियों के एकछत्र नेता होने की हवावाज़ी किया करते है जो वैश्यों की आबादी 24% बताते नहीं अघाते थे इसी के हवा बांध अपनी स्वार्थ और उल्लू सीधा कर रहे थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इच्छा यह मंशा स्पष्ट थी कि वैश्य समाज की जातियों को कलेक्टिव समूह में एक कोड दिया जाय पर वैश्य संगठन चलानेवाले बिहार सरकार के मंत्री और पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद मुख्यमंत्री की घण्टों तक चिरौरी की कि उनकी जातियों को अलग कोड दिया जाएगा इसके पूर्व कलवार जाति के विधायकों ने अपनी जाति के लिये अलग कोड मांगा नतीजतन वैश्य समाज के कुछ जातियों को छोड़ तमाम जातियों को अलग कोड दिया गया अब सवाल है कि वैश्य के नाम पर अपनी अपनी जातियों के हितों स्वार्थो की चिंता है तो फिर वैश्य समाज की नेतागिरी का क्या उनको नैतिक हक भी है क्या ढोंग पाखण्ड की जरूरत ही क्या है इस पूरे प्रकरण के बाद वे नेता नन्गे हो गए खुद की नजरों में गिरे न गिरें समाज की नजरों में जरूर गिर गए वैश्य संगठनों के छोटे मंझोले नेताओ का चंदा का धंधा बन्द होना चाहिए उन्हें खदेड़ना और सरेआम बेइज्जती किया जाना चाहिये अच्छा हुआ कि जातीय जनगणना के बहाने उनकी पोल खुल गई