उदासीनता-कपकपाती ठंड में कम्बल बांटने के बजाय कम ठंड में बंटती है कम्बल

संतोष कुमार ।

प्रखण्ड क्षेत्र में ठंड का कहर बीते चार दिनों से जारी है।इसके बावजूद गरीब व दिमागी रूप से अस्वस्थ आदि असहाय लोगों की मदद के लिए न तो सरकार आगे आ रहा है और न ही कथित समाजसेवी।वहीं जब ठंड कम जाती है तो सरकारी कर्मी से लेकर कथित समाजसेवी गिने-चुने कम्बल लेकर गरीबों और असहाय लोगों के झोपड़ियों के बीच पहुंचकर फोटो और सेल्फी खिंचवाते नजर आते हैं।कम्बल बांटने वालों को उस वक्त महसूस होता है कि हमने बहुत नेक काम किया।किन्तु वे इस बात से अंजान होते हैं कि जिनको वे कम्बल देकर वापस लौट रहे हैं।वे लोग देर से मिलने वाली सहायता के बजाय समय पर मिलने वाली सहायता से ज्यादा खुश होंगे और कम्बल देने वाले लोगों को दिल से दुवाएं देंगे।जबकि प्रखण्ड क्षेत्र में सैकड़ों ऐसे जरूरतमंद लोग हैं।

जिन्हें कपकपाती ठंड में उनके शरीर पर कम्बल या गर्म कपड़े तक नसीब नहीं है।पिछले ठंड में सरकारी कर्मियों द्वारा सरकारी सहयोग के अलावे आपसी आर्थिक सहयोग करके भी कम्बल का वितरण किया गया था।किंतु अभी की स्थिति ऐसी है कि लोग ठंड के मारे घर से अथवा प्रतिष्ठान से बाहर तक निकलना मुनासिब नहीं समझते।ऐसी स्थिति में भी क्षेत्र के सैकड़ों लोग सड़क किनारे किसी तरफ फुटपाथ आदि पर सोकर अपना जीवन काटने को मजबूर हैं।वहीं हरदिया पंचायत की बात करें तो पिछले वर्ष से लेकर अबतक दर्जनों फुलवरिया डैम से विस्थापित परिवारों के सरों से छत को तो उजाड़ दिया गया और झोपड़ियों में ठंड और बारिश में भींगने और ठिठुरने के लिए बदहाल स्थिति में छोड़ दिया गया।साथ ही उन गरीबों को आधारभूत सुविधाएं तक नहीं मिल पा रही है।एक विस्थापित ग्रामीण ने कहा कि पंचायत के ही एक व्यक्ति के द्वारा माननीय न्यायालय में अतिक्रमण को लेकर एक याचिका दायर होने से हमसभी बेघर हो गए।इस दौरान लगने वाले शिविर में कई बार जिलाधिकारी से भी इसकी शिकायत कि गई किन्तु अबतक किसी प्रकार का समाधान नहीं निकाला गया।लोग अब भी उम्मीद की आश में जी रहे हैं,कि कब कोई पदाधिकारी,अधिकारी व जन-नेता जागे और उनके समस्या का समाधान कर दे।लोगों के मन में बस एक ही सवाल उठता है कि “क्या सिस्टम अभी जिंदा है.”