सियासी जमीन के बगैर पवन सिंह की राह कठिन, एनडीए एवं महागठबंधन प्रत्याशी के बीच हो सकता है सीधा मुकाबला
दिवाकर कुमार तिवारी ।
सासाराम। देश की सियासत में फिल्मी सितारों का आना कोई नई बात नहीं है। शुरुआत से हीं कई फिल्मी हस्तियों ने सक्रिय राजनीति में कदम रखा और कुछ सफल भी हुए लेकिन ज्यादातर सितारे राजनीति में वो मुकाम हासिल नहीं कर सके जो उन्होंने अपने फ़िल्मी करियर के दौरान हासिल किया। बिहार की राजनीति में भी अब एक नया नाम भोजपुरी के पावर स्टार कहे जाने वाले पवन सिंह का जुड़ गया है। भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह को पहले भारतीय जनता पार्टी ने आसनसोल से अपना उम्मीदवार बनाया था लेकिन पवन सिंह पीछे हट गए और आसनसोल से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। देखा जाए तो पवन सिंह बिहार और उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में काफी लोकप्रिय है तथा वे इन्हीं क्षेत्रों से चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन इन क्षेत्रों से जब पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने पार्टी के खिलाफ जाकर बिहार के काराकाट लोक सभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। पवन सिंह की लोकप्रियता उनके नामांकन के दौरान भी दिखाई पड़ी और भारी संख्या में युवा रोड शो में शामिल हुए। लेकिन नामांकन के दौरान उमड़ी भीड़ क्या वोट में तब्दील होगी यह सवाल अब भी बना हुआ है। कहा गया कि यह भीड़ सेल्फी वाली भीड़ थी और लोग सिर्फ पवन सिंह को देखने के लिए जमा हुए थे। जो सियासत की नजर से देखें तो काफी हद तक सही भी लगती है। क्योंकि प्रत्याशियों को चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा जो बनी-बनाई व्यवस्था मिलती है, वह व्यवस्था निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह को नहीं मिलने वाली और इतने कम समय में इस राजनीतिक ढांचे को पूरे लोकसभा क्षेत्र में मजबूती से खड़ा करना भी पवन सिंह के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है। हालांकि शहर से लेकर गांव तक पवन सिंह के समर्थक तो मिल जाएंगे पर क्या ये समर्थक चुनाव के दौरान पवन सिंह के लिए एक कार्यकर्ता के रूप में कार्य करेंगे यह कहना मुश्किल है और यहीं पर पवन सिंह काफी कमजोर दिखाई पड़ रहे हैं।
साथ हीं एनडीए प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा एवं महागठबंधन प्रत्याशी राजाराम कुशवाहा को पूरे लोकसभा क्षेत्र के गांव गांव एवं बूथ स्तर पर जो सियासी जमीन उनके दल एवं सहयोगी दलों द्वारा मिलेंगी, उससे पवन सिंह कोसों दूर हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि सियासी जमीन के बगैर पवन सिंह की राह कठिन दिखाई पड़ती है और काराकाट में सीधा मुकाबला एनडीए एवं महागठबंधन प्रत्याशी के बीच हीं देखने को मिल सकता है। इधर चुनावी विश्लेषक भी पवन सिंह को मुकाबले से बाहर बता रहे हैं और उन्हें वोट कटवा के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन जो भी हो पवन सिंह ने काराकाट की लड़ाई को दिलचस्प बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है और सभी की निगाहें 4 जून को आने वाले चुनाव परिणाम पर टिक गई है।वहीं बात करें तो देश की राजनीति में फिल्मी सितारों के आने का काफी पुराना इतिहास रहा है। फिल्मी सितारों की लोकप्रियता देख कई राजनीतिक पार्टियां इन पर दांव आजमाती है और कई बार खुद फिल्मी सितारे भी राजनीतिक दलों से नजदीकियां बढ़ाकर चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर करते हैं लेकिन राजनीति में फिल्मी सितारों की सार्थकता हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। अक्सर देखा जाता है कि ज्यादातर फिल्मी सितारे चुनाव जीतने के बाद सदन की कार्रवाई से दूर रहते हैं। ऐसे सांसद ना तो कोई सवाल उठाते हैं और ना हीं किसी चर्चा में हिस्सा लेते हैं। जिसका खामियाजा पार्टी को अगले चुनाव में भुगतना पड़ता है। वहीं अब देखा जा रहा है कि आम मतदाता से लेकर राजनीतिक पार्टियां भी ऐसे सितारों को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहे हैं और लोग चाहते हैं कि उनका जनप्रतिनिधि समाज के बीच से हीं हो ताकि चुनाव जीतने के बाद भी नेताओं तक उनकी पहुंच बनी रहे।