घरेलू हिंसा से पीड़ित परिवार को भावनात्मक समर्थन,व स्थानीय थाना से परामर्श कानूनी सहायता से मदद करती है पूजा ऋतुराज

विश्वनाथ आनंद,
पटना- (बिहार)-समाज सेवा के क्षेत्र में चर्चित व वरिष्ठ समाजसेवी पूजा ऋतुराज नव सृजन संस्था कदमकुंआ पटना की सचिव है , यह लगातार घरेलू हिंसा कैसे रुके, इस पर शोध करते रहती है बताती हैं कि मैं प्रतिदिन पांच से छ: मामला घरेलू हिंसा का देखती हूं। जिसमें ज्यादातर मामला प्रेम विवाह रहता है और दहेज उत्पीड़न का रहता है। आज की लड़कियां ही नहीं शादीशुदा महिलाएं भी बिना सोचे समझे किसी भी लड़के से प्यार में पागल हो जा रही है , तो कहीं-कहीं तिरिया चरित्र नारियां लड़का को ब्लैकमेल करने लगती है की शादी नहीं करोगे तो हम आत्महत्या कर लेंगे ऐसे में दोनों का शादी तो हो जाता है लेकिन शादी के बाद जो झेलना पड़ता है वो पति ही समझता है एक -एक दिन कष्टदायक हो जाता है, ऐसी हालत में उसे कोई मदद करने वाला नहीं मिलता, अभी के समाज में महिलाएं भी अपना इज्जत ताक पर रख दे रही है उसे अपने परिवार समाज का कुछ भी ख्याल नहीं रहता और प्रेम में पागल होकर पति रहते हुए दूसरे के पति से प्यार कर बैठती है, बहुत शर्मसार कर देने वाली बात तब होती है जब चार-पांच बच्चों की मां किसी कुंवारा लड़का को प्रेम जाल में फंसा कर अपने घर में रखा रुपया पैसा जेवर लेकर घर से फरार हो जाती है , पति बेचारा बाहर में कमाता है और सारा पैसा अपनी पत्नी को दे देता है जमीन जायदाद भी पत्नी के नाम से ही लेता है और उसके साथ ऐसा धोखा करने वाली पत्नी का क्या कहना इज्जत को तार तार कर देती है और गांव,समाज को भी महका देती है ,कहीं कहीं से ऐसा मामला सुनने को मिलता है की हंसी आती है, कुछ महिला पुरुषों में प्यार का बुखार ज्यादा ही चढ़ जाता है कुछ पीड़ित युवा लड़कियों का कॉल आता है बताती है कि मेरे साथ कुछ लड़कों ने कोल्ड ड्रिंक में नसा का गोली डालकर पिला दिया और मेरे साथ गलत किया है मुझे मदद कीजिए, अभी के जनरेशन में प्यार का बुखार ज्यादा लग रहा , घरेलू हिंसा का यह भी एक बहुत बड़ा कारण है समाज में बुराइयां लगातार बढ़ते जा रहा है, हम महिलाएं को ही ज्यादा दोषी मानते हैं।अभी की बेटियों में सहनशक्ति बहुत काम हो गई है बड़े बुजुर्ग का सेवा,आदर सम्मान वाला संस्कार बिल्कुल विलुप्त होते जा रहे हैं। अधिकतर सभी समाज में यही देखते हैं कि वहां की बहू बेटियां अपने डॉगी का साफ सफाई में कोई कटौती नहीं करती यहां तक की डॉगी का पॉटी भी खुद साफ कर लेती है, लेकिन उसके घर में बड़े बुजुर्ग का तबीयत खराब हो जाती है तो उन्हें एक गिलास पानी तक देना दुश्वार हो जाता है । जहां वृद्धाओं को शारीरिक सेवा बहुत जरूरी होती है जो घर के परिवार ही कर सकते हैं उस जगह पर उन्हें कोई देखने वाला नहीं रहता यहां तक की पेंशन धारी बुजुर्गों वृद्ध महिलाओं का पेंशन तो उनके बाल बच्चों को बड़ा प्यारा लगता है ,लेकिन सेवा करना दुश्वार, यहां तक कि उनके सेवा के लिए पैसा देकर भी सेवा करवाना नहीं चाहते, उनके संपत्ति और पैसे पर पूरा अधिकार रखते हैं
जहां सभ्य समाज में हिंसा का कोई स्थान नहीं था परिवार में कभी छोटा-मोटा झगड़ा भी होता तो आपस में ही निपटा लेते थे आसपास के लोग नहीं जानते थे घर के में गार्जियन जो कहते थे वही होता था एक समान खाना पहनना और परिवार में बहुत ही उसने प्यार इज्जत सम्मान भरा होता था , झगड़ा होने के बाद भी लोग एक साथ बैठकर खाते पीते थे। आज के माहौल में शिक्षा तो अनेकों प्रकार के हो गए हैं जहां शिक्षा से लोग ओतप्रोत है वहीं ज्यादा घरेलू हिंसा देखने को मिल रहा है। लोगों में एक से बढ़कर एक पहनावा हो गया है लोगों के पास पैसा भी बहुत है लेकिन प्रेम स्नेह परिवार में बिल्कुल खत्म के कगार पर है ,हमको लगता है कि कुछ दिन में रिश्ता का भी नामो निशान मिट जाएगा । , ये एक चिंतनीय स्थिति को रेखांकित करते हैं। हमारे देश में घरों के बंद दरवाज़ों के पीछे बड़े बुजुर्गों को प्रताड़ित किया जा रहा है। यह कार्य ग्रामीण क्षेत्रों, कस्बों, शहरों और महानगरों में भी हो रहा है.मामूली बात को लेकर बतंगड़ बना रहता है,जैसे कहीं बहु खाना बनाने में ज्यादा रोटी बना दी या सब्जी में तेल मसाला ज्यादा डाल दी तो,या फिर मायके में रहने वाली तलाक लेकर जो बेटी रहती है। उसका चलती ज्यादा घर में चलता है। अपनी भाभियों पर ही चलती जमने लगती है,अधिकतर मामला ऐसा ही आता है,जिसमें बेटी के कारण मां अपने बहू बेटे से झगड़ा कर अलग रहती है, कहीं-कहीं भाई भाभी अपनी बहन की शादी में पैसा खर्च नहीं करने देते,माता-पिता भी बेटा के ही कहने पर चलते हैं और उन्हें बेटी से उतना लगाव नहीं रहता, मात्र दिखावा करते हैं कि बेटी को हम ज्यादा मानते हैं। लेकिन अंदरूनी बात यही है,जो धन कमाते हैं,वह बेटा के लिए ही कमाते हैं। किसी तरह से बेटी का शादी ब्याह कर देते हैं। जैसे तैसे कम खर्च में पार लग जाए वैसा ही लड़का ढूंढने में लगे रहते हैं।चाहे बेटी का उम्र क्यों ना शादी से पार हो जाए। ऐसे में कई बेटियां मेरे पास आती हैं कि मेरा विवाह आप करा दीजिए और मैंम आप हमारी मां के सामान बन जाइए। तब बहुत अफ़सोस लगता है कि इतना ज्यादा बेटा बेटी में अंतर क्यों। आज भी बहुत सारी बेटियों को मायके में झेलना पड़ता हैं। इसलिए कहते है कि बेटियां सिर्फ ससुराल में ही प्रताड़ित नहीं होती, मायका में भी भाभियों के द्वारा तंग किया जाता है, तंग नन्द आत्महत्या तक कर ले रही है, बहुत शर्मसार कर देने वाली मामला आता है कि सगा भाई भी बहन के साथ गलत संबंध बना लिया होता है जो किसी से कहने लायक नहीं रहता ,पीड़ित बेटी की मां भी उसे किसी से कहने को नहीं कहती है, तो कभी काम करने वाली की बेटियों के साथ उसके पिता ही शारीरिक संबंध बनाता हैं और रोने चिल्लाने पर बहुत पीटता हैं और उल्टे इल्जाम लगाता हैं कि इसका किसी और से संबंध है इसलिए मार रहे हैं, ऐसा मामला भी मेरे पास आता है । ऐसी महिलाएं जिनके पति दूर में नौकरी करते हैं। वैसी महिलाएं में ज्यादातर देखा गया है कि,सीधा सास ससुर, पति का फायदा उठाकर बहु किसी और से गलत संबंध बना लेती है और बाहर में तो घूमती फिरती है ही भाई बनकर घर में ही बुलाने लगती है। ऐसा बहुत सारा मामला को निपटाना होता है,तो कहीं बाल बच्चा सहित ही किसी प्रेमी के साथ फरार हो जा रही है । सीधा पति बेचारा अपना इज्जत बचाने के लिए पत्नी बाल बच्चा को रखना चाहता है, पर पत्नी बाल बच्चा को इसलिए नहीं देती कि उसी के आधार पर पहला पति से पैसा लेकर दूसरे पति के साथ ऐश करेगे । अब तो ज्यादातर ऐसा मामला आ रहा है,जो गैर मर्दों से संपर्क बना रही है और अपने सीधे पति और उनके परिवार को बुरे तरह से फंसा रही है ,ऐसे में पीड़ित पति के लिए सरकार से कोई मदद भी नहीं मिलती ।तो कई महिलाएं अपने घर गृहस्ती में रहकर घर का काम में तन मन से दिन भर लगी रहती है फिर भी घर के लोग सराहना नहीं करते ऐसे में कामकाज करने वाली महिलाओं का मनोबल गिरता है सब लोग चाहता है कि मेरा बड़ाई हो,महिला को घर गृहस्थी के काम करने के बदले में कोई धन या वेतन नहीं मिलता और उनके घर का सारा कार्य को उनका कर्तव्य मानकर करना पड़ता है उसका कुछ भी महत्व नहीं दिया जाता, लेकिन उसके बदले में उसकी सराहना जरूर करनी चाहिए तभी तो उनका मनोबल बढ़ेगा, ऐसे ही छोटी-छोटी बातें बहुत सारी घरेलू हिंसा में बदल जाती है, जो बहुत ही निंदनीय है, ऐसे में धीरे-धीरे परिवार में स्नेहा में कमी व विश्वास टूट जाता है और घर बिखर जाता है, नारी शक्ति के बिना मनुष्य के कुछ भी नहीं कर सकता नारी घर के इंजन के समान है,कहां जाता है कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ पर देवताओं का वास होता है। बिना नारी वाले घर को भूतों का डेरा बताया गया है, और कहा गया है ” बिन घरनी घर भूत का डेरा”।ऐसी मान्यता है कि जिस घर में नारी का आदर सम्मान नहीं होता है वहाँ पर लक्ष्मी का निवास नहीं होता है इसके बावजूद नारी आदिकाल से उपेक्षित होती चली आ रही है जबकि समय-समय पर इसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है।
वहीं पुरुष का भी उतना ही महत्व है। पुरुष भी दिन प्रतिदिन घरेलू हिंसा का शिकार हो रहे हैं। पुरुष पर भी पत्नियों द्वारा प्रताड़ित करने का आरोप लगातार आ रहा है,इतना ही नहीं परिवार के पूरे सदस्य भी हिंसा के शिकार हो रहे हैं और पूरा परिवार डिप्रेशन में चले जा रहे हैं,इतना ही नहीं,सबसे व्यापक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। सीटीस्कैन से पता चलता है कि जिन बच्चों ने घरेलू हिंसा में अपना जीवन बिताया है,उनके मस्तिष बहुत कमजोर रहते हैं। उनका याददाश्त ठीक नहीं रहता। और इन बच्चों का भी आदत झगड़ालू किस्म का हो जाता है। इसलिए हम सबसे महत्वपूर्ण बात यह कहेंगे कि पति पत्नी आपस में एक दूसरे को अच्छे से समझे कोई भी एक दूसरे को परेशान करते हैं तो खुद भी परेशान होते हैं,तो जीवन में खुश रहे। संतोषजनक जीवन जीना सीखें

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