मां की लोरी याद आती है-
विश्वनाथ आनंद।
पटना (बिहार)।लोरी सुनाती थीं मां और फट से नींद आ जाती थी क्या तुमको भी … मां की लोरी याद आती हैं?
अब हम मां वाली लोरी अपनी दोनों बाबू को सुनाती हूं
मेरी आंखें तो भर जाती है लेकिन दोनों बाबू नींद से सो जाती है।
मैं मां के याद में खो जाती हूं। हसीन पल मां का घर सपने देख
आंगन की खटिया पर सो जाती हूं .
वो अमरूद का पेड़, फिर यादों की लड़ी लग जाती है।
मां की सारी बातें एक-एक कर बहुत याद आती है।
काश: मां थोड़ी देर मुझे भी सहला जाती।
काश मां लोरी मुझे भी सुना जाती।
मैं मां से पूछती, पुराना है
ना मां लोरी वाली गीत ??
मां नानी से सीखी होगी ??
और नानी ने अपनी मां से,
उनकी मां ने अपनी मां से ।
फिर भी जस का तस लोरी है
मां की ममता के रस में कमी।
ना प्यार के आंचल में सिकुड़न
शुक्रिया है जिसने मेरी मां को बनाई, गर्व है मां मैं तुम्हारे हक में आई।
धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻मेरी स्वरचित कविता पूजा ऋतुराज सचिव- नव सृजन पटना।