एसटीएफआई का उतरी जोन शिक्षा शिविर सीकर में सम्पन्न – नागेंद्र सिंह

विश्वनाथ आनंद ।
औरंगाबाद (बिहार )- स्कूल टीचर्स फैडरेशन ऑफ इंडिया द्वारा उत्तरी जोन स्टडी कैम्प 29-31 जुलाई 2023 तक राजस्थान के सीकर में लगाया गया।इसकी मेजबानी राजस्थान शिक्षक संघ (शेखावत) द्वारा अपने पूर्व राज्याध्यक्ष स्वगीर्य सुल्तान सिंह ओला की स्मृति में 577 गज में करोड़ों में बनाए नये शानदार शिक्षक भवन में की गई।मौसम की खराबी के कारण हुए जगह जगह जलभराव व जाम के कारण झण्डा रोहण का कार्यक्रम लगभग एक घण्टा लेट हो सका, परन्तु बड़ी गर्मजोशी के साथ राष्ट्रीय उप प्रधान महाबीर सिहाग ने किया। इसके बाद सी एन भारती, महावीर सिहाग, नागेन्द्र सिंह, धर्मेंद्र सिंह, सुरेन्द्र कंबोज सचिव मण्डल के सदस्यों की संयुक्त अध्यक्षता में राजस्थान के महासचिव उपेन्द्र शर्मा ने डेलिगेट का स्वागत कर उद्घाटन सत्र शुरू करवाया। उद्घाटन सत्र के वक्ता अमरा राम राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय किसान सभा रहे। उन्होंने जनशिक्षा बचाने के देशव्यापी संघर्ष के लिए एसटीएफआई को सैल्यूट किया वही एतिहासिक किसान आंदोलन में राजस्थान शिक्षक संघ द्वारा प्रत्येक जिले से की लाखों रूपये की आर्थिक सहायता व खाने,टैंट आदि सामग्री से सहायता के लिए धन्यवाद भी किया। उन्होंने प्राइवेटाइजेशन उदारीकरण की नीतियों का दुष्प्रभाव मजदूर -किसानों – कर्मचारियों सभी पर एक समान हैं। दुनिया भर के मुठी भर लोगों के पास अकूत संपत्ति संग्रह व बाकी आर्थिक मंदी में डूब रहे है। उन्होंने बताया कि जिस तेजी से हमले है उसी तेजी से विरोध कार्यवाहियां भी हैं। प्रशिक्षण शिविर इन सभी संघर्षों का आधार है।उत्तरी भारत ने अगर साम्प्रदायिक – कार्पोरेट जगत को वोट देकर शक्ति दी थी,तो विरोध भी यहीं खडा़ हो सकता हैं।इसके बाद पहले विषय पर चर्चा बादल सरोज रखी। विषय था – वर्तमान दौर में साम्प्रदायिक सद्भाव एंव बदलाव के संघर्ष की बाधाएं। उन्होंने कहा कि हमारे देश में भावनाएं बहुत जल्दी आहत होती हैं,अगर ऐसा हो भी जाए तो अपनी आहत भावनाओं को प्रश्न के रूप में ढा़ल कर रखे।उन्होंने ग्यारहवीं शताब्दी में सोमनाथ मंदिर पर 1200 घुड़सवारों के साथ हमले करने आए महमूद गजनवी व 5000 की सेना,5500 पण्डितों,500 रसोइये,350 नाई,300 बढ़ई किलेनुमा मंदिर में होते हुए भी घण्टा बजाते रहे।आज 2023 में कार्पोरेट व साम्प्रदायिक नफरतें फैलाने वाले बहुत गजनवी हैं।जो आज भी हमसे घण्टा (थाली,ताली,रेत मुठी)बजवाना चाहते हैं। इनसे बचने के लिए हमें धर्म और साम्प्रदायिकता के अंतर को समझना होगा। मैं सही,मेरा धर्म सही,मेरी जाति सही,मेरी नस्ल सही तक कोई समस्या नहीं हैं। परन्तु मात्र मैं ही सही, मात्र मेरा ही धर्म -जाति- नस्ल सही हैं, बाकी सभी गलत,हीन,कमतर, पापी है यहीं भावना साम्प्रदायिकता हैं।इसकी जरूरत सिर्फ नफरत, कत्लेआम, दंगों, नरसंहार की राजनीति करने वालों को है।जो शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार से मानवाधिकार से,समता -समानता- बंधुत्व से डरते हैं।ऐसे लोग स्वयं अपने धर्म,जाति,देश व मानवता के भी दुश्मन है।यह सिर्फ कार्पोरेट की लूट पर पर्दा डालने के लिए किया जाता है।
दूसरे सत्र में सत्यपाल सिवाच ने “अध्यापकों में ट्रेड यूनियन का निर्माण” पर चर्चा की। उन्होंने समाज के विकास क्रम में कबीलाई व्यवस्था,दास प्रथा, सामंती व्यवस्था व पूंजीवादी व्यवस्था पर बात रखते हुए बताया कि ट्रेड यूनियन का पूंजीवादी व्यवस्था की ही उपज है। जिसमें सभी संसाधनों के मालिकों का वर्ग और श्रमिकों का वर्ग के रूप में दो वर्गीय व्यवस्था बनी। जिनमें उत्पादन के समय एकता व वितरण के समय संघर्ष के कारण द्वंद्धात्मक रिश्ते बनते हैं।एक के पास चंद लोगों व राजसत्ता की सभी ताकतें हैं जबकि कामगारों के पास बहुसंख्यक समाज की योजनाबद्ध वैचारिक एकता की की ताकत होती है। दोनों की जोर अजमाइश के संतुलन जितनी मांगे ही मानी जाती है।ट्रेड यूनियन की शिक्षा कहीं दी नहीं जाति, अपितु संघर्षों के अनुभवों की चर्चा को कलमबद्ध करके हमें स्वयं ही तैयार करनी होती हैं।

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