वट सावित्री पूजा शुभ मुहूर्त जानें पं वेद मूर्ति जी से

संतोष कुमार ।

सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत का अत्यंत महत्व बताया गया है। स्कन्द पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत प्रत्येक साल जयेष्ठ माह की कृष्‍ण पक्ष की अमावस्या तिथि को करने का विधान है।यह व्रत सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए ज्‍येष्ठ माह की कृष्‍ण पक्ष की अमावस्या को वट सावित्री निराहार रखती हैं।

ऐसे में सनातन वैदिक धर्म गुरु ज्योर्तिविद् पं वेद मूर्ति शास्त्री जी से आईए जानते हैं वट सावित्री व्रत का पौराणिक महत्व व शुभ मुहूर्तसर्व प्रथम ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का शुभारंभ काशी विश्वनाथ पंचांग अनुसार 18 मई, दिन गुरुवार को रात 9 बजकर 42 मिनट से होगा।ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का समाप्त 19 मई दिन शुक्रवार को रात 9 बजकर 22 मिनट पर होगा।
ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, वट सावित्री का व्रत 19 मई, दिन शुक्रवार को सभी सौभाग्यवती महिलाएं इस उत्तम व्रत को रखेंगी
वट परिक्रमा पूजा सर्वश्रेष्ठ शुभ मूहूर्त प्रातः 6:42 से 11:32 तककहा जाता है।जिस तरह से सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राणों को यमराज के हाथों से छीन कर लाई थी, उसी तरह इस व्रत को करने से पति पर आने वाले सारे संकट दूर हो जाते हैं। इस दिन वट वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा और कथा सुनी जाती है। ब्रम्हवैवर्त पुराण के अनुसार मूले ब्रम्हा त्वचा विष्णु कावेरी शिव शंकर पत्र पत्र सर्वदेवानां वट वृक्ष राजा नमोस्तुते

वट व पीपल वृक्ष में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश व सभी देवता सदा सर्वदा विराजमान रहते हैं इसलिए इनको वृक्षराज कहा गया है वृक्षों में सबसे लम्बी आयी वट वृक्ष को मिलता है वट में जटाओं को शंकर जी का जटा माना जाता है ।वट सावित्री व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्‍नान करके नए कपड़े पहनें और सोलह श्रृंगार करें। इसके बाद वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री व सत्यावान की मूर्ति स्‍थापित करें। इन्हें धूप, दीप, रोली और ‌सिंदूर से पूजन करके लाल कपड़ा अर्पित करें। बांस के पंखे से इन्हें हवा भी करें। इसके बाद बरगद के पत्ते को अपने बालों में लगाना ना भूलें।
वट वृक्ष समयानुसार यथा शक्ति 5, 11, 21, 51 या 108 बार मन में ऊं नमो भगवते वासुदेवाय नमः बोलकर शुद्ध मन से परिक्रमा करें और विद्वान ब्राह्मण से कथा श्रवण करें मन में जो भी संकल्प वो मन में रखकर ।
चने , मुंगफली , किशमिश या जो भी श्रद्धा हो वो प्रसाद के रूप में चढ़ाएंइस व्रत में चने को प्रसाद में रूप में चढ़ाने का नियम है। कथा के अनुसार जब यमराज सत्वान के प्राण ले जाने लगे तो सा‌‌वित्री भी उनके पीछे पीछे चलने लगी। ऐसे में यम ने उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। सा‌वित्री ने एक वरदान में सौ पुत्रों की माता बनना मांगा और जब यम ने उन्हें ये वरदान दिया तो सावित्री ने कहा कि वे पतिव्रता स्‍त्री है और बिना पति के मां नहीं बन सकती। यमराज को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने चने के रूप में सत्यवान के प्राण दे दिए। सा‌वित्री ने सत्यवान के मुंह में चना रखकर फूंक दिया, जिससे वे जीवित हो गए। तभी से इस व्रत में चने का प्रसाद चढ़ाने का नियम है। कथा श्रवण के बाद विसजर्न कर यथा शक्ति दान करें , चावल, आटा, सुराही पंखा आदि जो श्रद्धा हो अपने घर में बड़े बूजुर्गों से अखण्ड सौभाग्यवती भव: का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त करें।

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