डॉ.हरेराम सिंह को मिला कविवर पोद्दार रामावतार ‘अरुण’ सम्मान

चंद्रमोहन चौधरी ।

डॉ.हरेराम सिंह को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन-पटना ने हिन्दी भाषा एवं साहित्य की उन्नति में मूल्यवान सेवाओं के लिए सम्मेलन के 42 वें महाधिवेशन में ” कविवर पोद्दार रामावतार ‘अरुण’ सम्मान से विभूषित किया। यह सम्मान अध्यक्ष बिहार विधान सभा माननीय श्री अवध बिहारी चौधरी व बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डॉ.अनिल सुलभ के कर कमलों द्वारा प्रदान किया गया। इस मौके पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पदाधिकारियों सहित जाने-माने साहित्यकारों, हिन्दी प्रगति समिति अध्यक्ष व बिहार गीत के रचयिता सत्यनाराण, पूर्वकुलपति मंडल विश्वविद्याल मधेपुरा डॉ.अमरनाथ सिन्हा, पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ.सीपी ठाकुर, अतिथि प्रोफेसर केंद्रीय वि.वि.ओडिसा डॉ.जंगबहादुर पाण्डेय मौजूद थे। बताते चले कि डॉ.हरेराम सिंह तेरह वर्ष की उम्र से लगातार लिखते आ रहे हैं और अब तक चालीस पुस्तकें लिख चुकें हैं। इनकी महत्वपूर्ण पुस्तकों में ” हाशिए का चाँद”, “रात गहरा गई” है! “मेरे गीत याद आयेंगे”, “इतिहास के पन्ने”, ” जामुन का पेड़” , ” जड़ से काटी गई स्त्री” आदि एक दर्जन कविता-संग्रह, “डॉ.ललन प्रसाद सिंह, जीवन और साहित्य” , “हिंदी आलोचना का प्रगतिशील पक्ष”, “हिंदी आलोचना का जनपक्ष”, “किसान जीवन की महागाथा: गोदान और छमाण”, “डॉ.गोवर्द्धन सिंह की आलोचना-दृष्टि”, ” हिन्दी आलोचना : एक सम्यक् दृष्टि “(आलोचना-ग्रंथ) कनेर के फूल, अधूरी कहानियाँ (कहानी-संग्रह) आदि महत्वपूर्ण हैं। डॉ.हरेराम सिंह का जन्म 30 जनवरी 1988 ई. को बिहार के रोहतास जिला के करुप ईंगलिश गाँव में हुआ। ये बचपन से ही मेधावी थे। किसान, मजदूरों, दलितों के प्रति करुणा की भावना इनमें सदा से रही। इनके दादा लाल मोहर सिंह कुशवंशी एक अच्छे किसान के साथ, जड़ी-बूटी से ग्रामीण जन का आजीवन उपचार करते रहे। इनके नाना-नानी भी इन्हें बहुत प्यार करते थे। किंतु बाद में कई मुसीबतों व आर्थिक अभाव के कारण कठोर परिश्रम करना पड़ा; फिर भी ये लगातार लिखते रहे। ग्रामीण बच्चे को ये निशुल्क शिक्षा भी देने का किम किए। ये उच्च माध्यमिक विद्यालय नासरीगंज में प्लस टू के हिन्दी अध्यापक भी हैं। इनकी कविताओं में आमजन की पीड़ा के साथ उनके लिए न्याय निमित लड़ते रहने का उद्घोष भी है। इनपर बुद्ध व मार्क्स का गहरा प्रभाव है। इनकी कविताएँ केदारनाथ सिंह की शैली मिलती-जुलती हैं। इनकी आलोचना पद्धति रामचंद्र शुक्ल व नामवर सिंह की बीच की कड़ी है।