फोरलेन बनने के दौरान हजारों पेड़ कटे,आज तक नहीं लगे एक भी पेड़

संतोष कुमार ।

एनएच-31 को गाबर कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा फोरलेन बनाकर एनएच-20 नाम दिया गया।रजौली में समेकित जांच चौकी से लेकर थाना क्षेत्र के अंतिम छोर लालू मोड़ तक घने एवं विकसित हजारों पेड़ों का सफाया वन विभाग द्वारा प्राप्त एनओसी के आधार पर कर दिया गया।किन्तु फोरलेन निर्माणकर्ता गाबर कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा नई तकनीक की मदद से पेड़ों को मशीनों की सहायता से जड़ से उखाड़कर सड़क किनारे लगाया गया।जिसमें एक भी पेड़ पुनः स्थापित नहीं हो सका।पेड़ों के नहीं रहने से राहगीर एवं यात्रा कर रहे लोगों को भीषण गर्मी में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।पर्यावरण को संतुलित करने के लिए पेड़ों की महत्ता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।ये बड़े दुर्भाग्य वाली बात है कि जिनपर पेड़ों को बचाने की जिम्मेदारी है,वही अधिकारी मौन हैं।पेड़ों की महत्ता को हम इस बात से समझ सकते है कि एक व्यक्ति जीवित रहने के लिए एक दिन मे लगभग पांच सौ लीटर शुद्ध ऑक्सीजन का इस्तेमाल करता है,क्योंकि वायु में आक्सीजन की मात्रा लगभग 20% होती है।परंन्तु सांस छोड़ते समय 15% ऑक्सीजन ही बाहर आती है,यानि 5% ऑक्सीजन का हम उपयोग कर लेते हैं।इससे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि पेड़ हमारे जीवन में कितने उपयोगी हैं।सामान्य पेड़ एक दिन मे 230 लीटर ऑक्सीजन देता है।पेड़ तापमान को नियंत्रित करने में भी सहायक होते हैं,क्योंकि यह पाया गया है कि जिन स्थानों पर अधिक पेड़ होते हैं,वहां तापमान 3 से 4 डिग्री कम होता है।इससे ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या से निपटने में सहायता मिलती है।

पेड़ों के महत्व को लेकर सुप्रीम कोर्ट की एक रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की एक विशेष समिति ने पेड़ों से मूल्यांकन संबंधित एक रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी है,जिसके मुताबिक एक पेड़ का मूल्य एक साल में 74,500 रुपए हो सकता है।पेड़ जितना पुराना होता है,उसके मूल्य उतनी ही बढ़ोतरी हो जाती है।ऐसा पहली बार हुआ है,जब पेड़ों का मूल्यांकन किया गया है। समिति की रिपोर्ट के मुताबिक 100 साल पुराने एक हैरिटेज वृक्ष की कीमत 1 करोड़ रुपए से अधिक हो जाती है।इस मूल्यांकन को आसान शब्दों मे समझा जाए तो यदि पेड़ की कीमत 74,500 रुपये है,तो इसमें आक्सीजन की कीमत 45,000 रुपए है।जबकि जैविक खाद की कीमत 20,000 रुपए है।पेड़ों की कीमत उसके द्वारा छोड़ने जाने वाले ऑक्सीजन की लागत और अन्य लाभों पर आधारित है।पीठ ने कहा कि वह पेड़ काटने की जरूरत का चौड़ीकरण जैसी परियोजनाओं के लिए एक नियम तय करने पर विचार करेगी,ताकि पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो।

पदाधिकारी से सवाल करने पर देते हैं गोलमटोल जवाब

एनएच-20 के किनारे पेड़ों के सवाल पर फोरलेन सड़क निर्माणकर्ता गाबर कंस्ट्रक्शन कंपनी के मैनेजर आरके त्रिपाठी गोलमटोल जवाब दिया।उन्होंने कहा कि वन विभाग से एनओसी मिलने के बाद पेड़ों की कटाई की गई।काटे गए पेड़ नहीं स्थापित होने पर कहा कि पेड़ों की कटाई एवं लगाई का कार्य एनएचएआई ने जबरन गाबर कंस्ट्रक्शन कम्पनी से करवाई है।जिसका एक पैसे का भुगतान नहीं किया गया है।हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि हमें रजौली से गिरियक तक 8000 पेड़ लगाने थे,जो जारी है।हर 3 मीटर की दूरी पर एक पेड़ लगाया जाएगा,उसके लिए गड्ढ़े आदि खोदे जा रहे हैं।उन्होंने कहा कि मानसून आने के बाद पेड़ों को लगाने पर जोर दिया जाएगा।वहीं अन्य प्रश्नों के जवाब देने में टालमटोल करते दिखाई दिए।