कर्म का फल मिलना निश्चित, इसलिए अच्छा कर्म करें : श्री जीयर स्वामी

दिवाकर तिवारी ।

रोहतास। जिले के काराकाट प्रखंड अंतर्गत गोराड़ी गांव में 26 फरवरी से चल रहे श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दौरान प्रवचन करते हुए श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी ने मानव कर्म के बारे में विस्तार से लोगों को समझाया । कहा कि कर्म करते समय व्यक्ति को सतर्क रहने की आवश्यकता है । क्योंकि कर्म का फल अकाट्य होता है। इसका फल जरूर मिलता है। क्योंकि जो जैसा कर्म करेगा वैसा फल मिलेगा हीं। उन्होंने कहा कि इन्द्रियों के दमन से व्यक्ति यशस्वी बनता है। धर्म की रक्षा करने वालों की रक्षा धर्म करता है। कहीं भी जायें, वहां से दुर्गुण और अपयश लेकर नहीं लौटें। उत्पन्न परिस्थितियों में अपने विवेक से निर्णय लें, जिससे भविष्य कलंकित न हो पाए। प्रयास हो कि वहां अपने संस्कार संस्कृति एवं परम्परा के अनुरूप कुछ विशिष्ट छाप छोड़कर आयें, ताकि तत्कालिक परिस्थितियों के इतिहास में आपका आंकलन विवेकशील एवं संस्कार संस्कृति संरक्षक के बतौर किया जा सके। उन्होंने भागवत कथा के प्रसंग में इन्द्रियों के निग्रह की चर्चा की। इन्द्रियों को स्वतंत्र छोड़ देने से पतन निश्चित समझें। एक बार अर्जुन इन्द्रलोक में गये हुए थे। वहां उर्वशी नामक अप्सरा का नृत्य हो रहा था। नृत्य के पश्चात् अर्जुन शयन कक्ष में चले गये। उर्वशी उनके पास चली गयी। अर्जुन ने आने का कारण पूछा। उर्वशी ने वैवाहिक गृहस्थ धर्म स्वीकार करने का आग्रह किया। अर्जुन ने कहा कि मृत्यु लोक की मर्यादा को कलंकित नहीं करूंगा। उर्वशी को एक वर्ष तक नपुंसक बनने का शाप दे दिया। अर्जुन दुर्गुण और अपयश लेकर नहीं लौटे। उर्वशी का शाप उनके लिए अज्ञातवाश में वरदान सिद्ध हुआ। स्वामी जी ने कहा कि ‘’धर्मो रक्षति रक्षितः यानी जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है। जो धर्म की हत्या करता है, धर्म उसकी हत्या कर देता है। ‘’धर्म एव हतो हन्ति। इसलिए धर्म का परित्याग नहीं करना चाहिए। स्वामी जी ने कहा कि जो हमारे पाप, अज्ञानता और दुःख का हरण करे, वो हरि है। वेदांत दर्शन की बात की जाए तो संसार में आने का मतलब ही होता है कि इसमें रहना नहीं है। कहा कि परिवर्तन का नाम संसार है। घुमते चाक पर बैठी चीटी और ट्रेन के यात्री कहें कि हम तो केवल बैठे हैं । यह उचित नहीं, क्योंकि शरीर से श्रम भले न लगे लेकिन यात्रा तो तय हो रही है। मन से ईश्वर के प्रति समर्पण से वे रक्षा करते हैं। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को शिक्षित करें, अच्छे संस्कार दें इसी में सबकी भलाई है। माता-पिता की सेवा, संतों को आदर, धर्म के प्रति सजग तथा जीवों पर दया करना ही ईश्वर भक्ति है। जिन माताओं को प्रसव होना है उन्हे अच्छी धार्मिक किताबें पढ़नी चाहिए। अश्लीलता से परहेज करे जिससे होनेवाला बच्चे पर भी इसका गलत प्रभाव नहीं पड़े। संत ने गर्भ में पल रहे अभिमन्यु की कथा सुनाकर बताया कि गर्भ में भी बच्चे सुनते हैं।