चार सितंबर से कृमि मुक्ति अभियान, 26 लाख को खिलाया जायेगा अल्बेंडाजोल

मनोज कुमार ।

एक से 19 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों व किशोर—किशोरियों को किया गया लक्षित

शरीर में कृमि होने से बच्चों का नहीं होता है सही शारीरिक व मानसिक विकास

गया, 22 अगस्त: जिला में चार सितंबर से राष्ट्रीय कृमि मुक्ति अभियान संचालित किया जायेगा। इस अभियान के दौरान 26 लाख 24 हजार 851 बच्चों को कृमि मुक्ति के लिए दवा खिलाई जायेगी। इसके लिए जिला स्तर पर जरूरी तैयारी कर ली गयी है। अभियान में छूटे बच्चों के लिए 11 सितंबर को मॉप अप राउंड संचालित किया जायेगा। एक से 19 वर्ष के बच्चे और किशोर—किशोरियों को दवा का सेवन कराना है। जिले के सभी प्रखंडों के आंगनबाड़ी केंद्रों तथा स्कूलों में दवा का सेवन कराया जायेगा। स्वास्थ्य विभाग द्वारा आइसीडीएस तथा शिक्षा विभाग के साथ समन्वय स्थापित किय गया है। सिविल सर्जन ने बताया कि चार सितंबर से प्रारंभ होने वाले राष्ट्रीय कृमि मुक्ति अभियान को लेकर आशा लाइनलिस्ट तैयार कर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के साथ साझा करेंगी। अभियान के दौरान बच्चों को अल्बेंडाजोल दवा दी जायेगी। एक से 19 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों को दवा आयु के अनुसार दी जायेगी। स्कूलों तथा आंगनबाड़ी केंद्रों पर दवा का सेवन कराया जाना है। प्रखंड स्तर पर सभी स्वास्थ्य केंद्र, आइसीडीएस तथा शिक्षा विभाग आवश्यकतानुसार सभी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, स्कूल शिक्षक को दवा वि​तरित करेंगे।

कृमि से शारीरिक व मानसिक विकास में बाधा:
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ राजीव अंबष्ट ने बताया कि बच्चों और किशोर एवं किशोरियों पर कृमि का दुष्प्रभाव होता है। कृमि के कारण बच्चों और किशोर—किशोरियों के शारीरिक और मानसिक विकास में बाधा, एनीमिय, कुपोषण, स्कूलों में अनुपस्थिति और आर्थिक उत्पादकता में कमी जैसी समस्या देखने को मिलती है। बताया कि कृमि ऐसे परजीवी है जो मनुष्य की आंत में रहते हैं और जीवित रहने के लिए मानव शरीर के जरूरी पोषक तत्वों को खाते हैं।

बच्चों में कृमि होने के गंभीर लक्षण:
गंभीर कृमि संक्रमण से दस्त, पेट दर्द, कमजोरी, उल्टी और भूख नहीं लगना सहित कई सारे लक्षण हो सकते हैं। बच्चे में कृमि की मात्रा जितनी अधिक होगी, उसमें संक्रमण के लक्षण उतने ही अधिक होंगे। हल्के संक्रमण वाले बच्चे व किशोरों में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। बच्चों को कृमि संक्रमण से बचाव के लिए अल्बेंडाजोल दवा सेवन कराना जरूरी है। इससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। स्वास्थ्य और पोषण में सुधार, एनीमिया में नियंत्रण, समुदाय में कृमि के फैलाव या व्यापकता में कमी, सीखने की क्षमता और कक्षा में उपस्थिति में सुधार तथा व्यस्क होने पर काम करने की क्षमता और आय में बढ़ोतरी होती है।

इस प्रकार फैलता है कृमि:
संक्रमित बच्चे के शौच में कृमि के अंडे होते हैं। खुले में शौच करने से ये अंडे मिट्टी में मिल जाते हैं और विकसित होते हैं। स्वस्थ बच्चों के नंगे पैर चलने से, गंदे हाथों से खाना खाने से या फिर बिना ढ़का हुआ भोजन खाने से, लार्वा के संपर्क में आने से संक्रमित हो जाते हैं।

कृमि संक्रमण से बचाव के तरीके:
नाखून साफ और छोटे रखें
हमेशा साफ पानी पिएं
खाने का ढंक कर रखें
साफ पानी से फल व सब्जी धोएं
खाने से पहले और शौच के बाद साबनु से हाथ धोएं
आसपास की सफाई रखें, जूता या चप्पल पहनें
खुले में शौच नहीं करें, शौचालय का प्रयोग करें

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