है हमें जाना कहाँ?- डॉ कुमारी रश्मि प्रियदर्शनी

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विश्वनाथ आनंद
गया( बिहार )-हम यहीं थे, हम यहीं हैं, हम यहीं होंगे सदा।
छोड़कर ब्रह्मांड अपना, है हमें जाना कहाँ?
हम नहीं थे, हम नहीं हैं, हम नहीं होंगे सदा।
हम रहें, या ना रहें, चलता रहेगा यह जहां।।

यह गगन, सारी धरा, ये चाँद-तारे, भास्कर।
थे यहीं पर, बस दिखाई हम नहीं थे पड़ रहे।।
पेड़-पौधे, झील, नदियाँ, सिंधु, पर्वत के शिखर।
थे यहीं पर, बस, दिखाई हम नहीं थे पड़ रहे।।

किंतु, नियति में लिखा था जन्म लेंगे जीव बन।
धर मनुज तन भूमि पर हम; आज साँसें ले रहे।।
हैं धरा पर घर बनाने में जुटे यह भूलकर; कल।
फिर, दिखाई हम नहीं देंगे, किसी को भी यहाँ।।

गगन होगा, धरा होगी, चाँद-तारे-सूर्य भी।
दे रहे होंगे दिखाई हम नहीं केवल यहाँ।।
पेड़-पौधे, झील, नदियाँ, सिंधु, पर्वत के शिखर।
सब यहीं होंगे, दिखाई हम नहीं देंगे यहाँ।।

बस दिखाई ही नहीं हम दे रहे होंगे यहाँ संसार में।
आत्मा का रूप धर ब्रह्मांड में ही रह रहे होंगे कहीं।।
या किसी भी जीव का तन धर भटकते फिर रहे होंगे।
यहीं ब्रह्मांड में ही हम; हमें पा मुक्ति भी रहना यहीं।।