पटना साहिब लोकसभा 3o क्षेत्र से भारतीय जन क्रांति दल (डेमो)से चुनाव लड़ रहे ब्राह्मण नेता केवल उम्मीदवार ही नहीं , परिवर्तन के देवदूत भी हैं
विश्वनाथ आनंद ।
पटना( बिहार )- आजादी के बाद लगातार राजनीतिक उपेक्षा का दंश झेल रहे ब्राह्मण समाज के महान नेता एवं उनके सूत्रधारों में एक प्रसिद्ध समाजसेवी एवं स्वनिर्मित अस्तित्व वाले ख्याति प्राप्त पत्रकार स्वतंत्र, निष्पक्ष, एवं निर्भीक लोकप्रिय पत्रिका “दिव्यरश्मि” के संपादक तथा भारतीय जन क्रांति दल के संस्थापक डा. राकेशदत्त मिश्र पटनासिटी क्षेत्र से उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में बुलंदी के साथ डटे हैं. एक ओर जहां तमाम खड़े उम्मीदवार करोड़ों रूपये खर्च करके अपनी ताकत दिखाने को तत्पर हैं, वहीं हमारे उम्मीदवार को सीमित साधन एवं सुविधा का अभाव निश्चित रूप से खटकता होगा जो हम सभी के लिए चिंता एवं चुनौती का विचारनीय विषय है.हम सब विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े तथा कौटिल्य मंच एवं भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा अपने लोगों से अपील कर रहे हैं कि हर तरह से उन्हें आर्थिक, शारीरिक, मानसिक सहायता, मार्गदर्शन आशीर्वाद से अनुग्रहित करने की कृपा कर उनका हौसला बढ़ाएंगे.आपको ज्ञात है कि सामाजिक न्याय कै प्रबल पक्षधर होने के कारण हमारी बढ़ती लोकप्रियता जातिगत वर्चस्ववादी नेताओं को पसंद नहीं आत.फलस्वरूप दसकों से हम परेशान और अपमानित होते रहे हैं.एक नियोजित राजनीतिक षड्यंत्र के तहत हमारी उपेक्षा होती रही है. यह सिलसिला आज भी जारी है. फलस्वरुप हमें भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संसद, विधानसभा मे अपनी आवाज उठाने के लिए आगे आना होगा. उसी कड़ी में बड़ी संख्या में अपने लोगों के अनुरोध पर लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी के रूप में आज राकेशदत्त मिश्र जी ने एक साहसिक कदम उठाया है।
जो हमारे लिए स्वागत एवं समर्थन योग्य है क्योंकि आजादी के पहले और बाद के वर्षों में भी ब्राम्हण समाज के श्रेष्ठ जनों ने अपने महान व्यक्तित्व एवं कृतित्व से , अपने खून और पसीने से सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में चाहे वह क्षेत्र विज्ञान का हो , कला का हो अथवा संस्कृति , अध्यात्म , धर्म , समाज या राजनीति का हो , उन्हें सींचा है , सँवारा है। अपनी महान उपलब्धि से कीर्तिमान स्थापित किया है. दुःख की हर घड़ी में तन , मन , धन से राष्ट्र के साथ खड़े रहे हैं जिससे मगध ही नहीं संपूर्ण भारतवर्ष गौरवान्वित हुआ है. विरासत में मिली वही शिक्षा और संस्कार के कारण ही मिश्र जी की नाड़ी के हर स्पंदन में भी संपूर्ण समाज का सर्वांगीण विकास का सपना रहा जिसमें खासकर युवा शक्ति कै रचनात्मक उपयोग और मनुष्य मात्र के हित में उच्च , श्रेष्ठ आदर्शपूर्ण , शांतिपूर्ण एवं सार्थक जीवन -मार्ग का मानचित्र आभासित है. जिनकी दृष्टि मानवतावादी और पूर्ण प्रगतिशील है. जिनके चिंतन में संवेदना और अक्षुण्ण मानवता है.स्वाभाविकत: इन्हें मुट्ठी भर जातिवादी नेताओं ने राजनीति की मुख्यधारा से अलग रखने के लिए व्यक्तित्व, कृतित्व के बढ़ते कद के कारण इन्हें भी विभिन्न प्रकार के राजनीतिक षड्यंत्र से आगे आने नहीं देना चाहा. यह भी सच है कि अपने समाज में राजनीतिक चेतना का घोर अभाव होने के कारण हम सबने और जातियों की तरह अपनी जाति का साथ न देकर भारी भूल की है . हमने चार पीढ़ियों का बलिदान किया है. अब हमें भी अपने अतीत से प्रेरणा लेकर राजनीति के क्षेत्र में सजग सचेत रहने की आवश्यकता है.
हम अधूरे नहीं , हम अभागे नहीं।
पर बात इतनी सी है हम जागे नहीं।।अन्यथा आखिर क्या मजबूरी है कि हम सभी आजादी से लेकर आज तक , जिसने हमारी चार पीढ़ियों को लूटा , हम उसी वर्चस्ववादी , वंशवादी , जातिवादी , स्वार्थी एवं अवसरवादी नेताओं के साथ पूरी ईमानदारी के साथ खड़े हैं . जिसके फलस्वरुप ब्राह्मणों को जीने का जो आधार अतीत से हमें प्राप्त था ,अधिकार था जैसे — आयुर्वेद, ज्योतिष , कर्मकांड, मठ , मंदिर , पाठशाला आदि के संचालन — ये सबकुछ हमसे छीन लिया गया । अब न तो हमें शहर में जीवन है , न गांव में जीने का आधार . इसके बावजूद भी हमारे बच्चे विभिन्न कठिनाइयों को झेलते हुए अपनी कड़ी मेहनत की बदौलत शिक्षा में सफलता प्राप्त करते हैं, विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेकर शत प्रतिशत सफल होने के बावजूद भी हमारे बच्चे ब्राह्मण होने के कारण उच्च शिक्षा से वंचित कर दिए जाते हैं, फलस्वरूप उनका मनोबल टूट जाता है, वे हताशा निराशा एवं अवसाद में रहकर बेरोजगारी का दंश झेलने के लिए मजबूर हो जाते हैं