एनीमिया ग्रसित गर्भवती की लाइनलिस्ट तैयार कर मैटरनल एनीमिया मैनेजमेंट का निर्देश

मनोज कुमार ।

मेडिकल अफसर की निगरानी में गर्भवती को इंट्रावेनस आयरन सुक्रोज की देनी है खुराक

गया, 28 नवंबर: नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—5 की रिपोर्ट के मुताबिक 15 से 49 वर्ष आयुवर्ग की 64.4 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित होती हैं। वहीं एनएफएचएस—4 की रिपोर्ट के मुताबिक इसी आयुवर्ग की 68.1 फीसदी गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित थीं। इसमें 3.7 प्रतिशत की कमी आयी है। एनएफएचएस—5 की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 63.1 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैंं। ध्यान देने वाली बात यह है कि महिलाओं के किसी भी समूह में एनीमिया का प्रतिशत 50 प्रतिशत से अधिक है। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया से बचाव एवं प्रबंधन कर मातृत्व एवं शिशु मृत्यु दर को कम करना है। एनीमिया से बचाव के लिए गर्भावस्था के चौथे माह की शुरुआत से प्रत्येक दिन आयरन एवं फॉलिक एसिड की एक गोली, कुल 180 गोली का सेवन कराया जाना महत्वपूर्ण है। लेकिन कई गर्भवती ऐसी होती हैं जिनका हीमोग्लोबिन स्तर काफी कम होता है और वे गंभीर या अतिगंभीर एनीमिया से ग्रसित होने की श्रेणी में आती हैं। इसके लिए आयरन सुक्रोज के इंजेक्शन की व्यवस्था होती है। यह जानकारी जिला स्वास्थ्य समिति, यूनिसेफ तथा एम्स पटना के सहयोग से चिकित्सा पदाधिकारियों तथा एएनएम के लिए आयोजित मैटरनल एनीमिया मैनेजमेंट प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षकों ने दी। इस दौरान बताया गया कि सभी गर्भवती महिलाओं का प्रत्येक प्रसव पूर्व जांच और प्रसव पश्चात जांच के दौरान हीमोग्लोबिन की जांच की रिपोर्ट के आधार पर एनीमिया मैनेजमेंट करना आवश्यक है।

एनीमिया ग्रसित गर्भवती की लाइनलिस्टिंग का निर्देश:
यूनिसेफ के राज्य सलाहकार प्रकाश सिंह ने बताया कि सिविल सर्जन तथा डीपीएम के माध्यम से जिला में आशा तथा एएनएम को एनीमिया से ग्रसित गर्भवती महिलाओं को चिन्हित करने का निर्देश दिया गया है। बताया कि इसके लिए हीमोग्लोबिनोमीटर चिकित्सीय उपकरण मुहैया कराया गया है। इसका उपयोग प्रसव पूर्व जांच के लिए स्वास्थ्य केंद्र आने वाली या ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता एवं पोषण दिवस के मौके गर्भवती महिलाओं के हीमोग्लोबिन के स्तर की जांच करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग कर एनीमिया ग्रसित महिलाओं की लाइनलिस्टिंग करें तथा उनके एनीमिया प्रबंधन का काम करें। साथ ही निर्देश दिया गया है कि इंट्रावीनस आयरन सुक्रोज की खुराकें पूर्ण होने के एक माह के उपरांत हीमोग्लोबिन स्तर में कोई सुधार नहीं होने पर एनीमिया की अन्य कारणों की जांच एवं उपचार के लिए जिला अस्पताल या मेडिकल कॉलेज रेफर करना है।

आयरन सुक्रोज को लेकर दिया गया यह प्रशिक्षण:
प्रशिक्षण के दौरान इंट्रावीनस आयरन सुक्रोज देने की विधि के बारे में भी प्रशिक्षण दिया गया। प्रतिभागियों को बताया गया कि एक बार में कुल 200 मिलीग्राम आयरन सुक्रोज की खुराक दिया जा सकता है। यह खुराक नॉर्मल सेलाइन में बीस से तीस मिनट में दिया जाना है। अधिकतम खुराक एक सप्ताह में छह सौ मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। एक गर्भवती के लिए कुल आयरन सुक्रोज की खुराक एक हजार मिलीग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। चिकित्सा अधिकारी की निगरानी में ही गर्भवती महिला को इंट्रावेनस आयरन सुक्रोज की डोज देनी है। इस दौरान गर्भवती का बीपी, ह्रदय गति, सांस दर, तापमान और भ्रूण के दिल की धड़कन की दर जैसे महत्वपूूर्ण संकेतों की निगरानी की जानी चाहिए। आयरन सुक्रोज देने के बाद गर्भवती महिला को कम से कम तीस मिनट के लिए देखरेख में रखना जरूरी है। साथ ही सभी जीवन रक्षक उपकरण मौजूद रखना है। आयरन सुक्रोज देने के बाद गर्भवती महिला के हीमोग्लोबिन स्तर को चार से छह सप्ताह में जांचना है।