जातीय जनगणना ने सबसे ज्यादा नुकसान किया तो वो वैश्य समाज का
संजय वर्मा .
जातीय जनगणना ने सबसे ज्यादा नुकसान किया तो वो वैश्य समाज का सभी 56 उपजातियों को वैश्य में गणना नहीं कर खण्ड विखण्ड कर दिया इससे वैश्य समाज की एकजुटता को करारा धक्का लगा वैश्य समाज की उपजातियों में तेली सोनार कलवार सूरी ठठेरा कसेरा या अन्य सभी उपजातियों का अलग अलग जातीय सर्वेक्षण राजनीतिक षड्यंत्र के तहत किया ताकि फुट डालो राज करो की नीति के तहत इनको अपना गुलाम बनाये रख सकें गोवार कुर्मी कोयरी की उपजातियों को जब एक जाति माना गया तो फिर वैश्यों की उपजातियों का अलग अलग सर्वेक्षण कराया गया हकीकत यह है कि बिहार में अकेले 26 %वैश्य है जिसे स्वीकारना देखना नही चाहती राजनीतिक पार्टियां अन्य पार्टियां एमवाय या माय बाप या सवर्ण दलित जो भी समीकरण बना ले फिर भी वैश्यों की आवादी के सामने बौना ही साबित होगा
इसलिये गहरी साजिश के तहत वैश्यों को खण्ड खंड में बांटकर जातीय जनगणना की गई क्योंकि राजनीतिज्ञों को यह मालूम हो गई कि जब वैश्यों में एकजुटता हो गई वो संगठित हो गई राजनीतिक सामाजिक जागरूकता हो गई तो फिर बड़ा बवण्डर बखेड़ा खड़ी हो जाएगी उनका दाल नहीं गलेगी फिर जो वैश्य समाज हासिये पर है वो नेतृत्वकर्ता की भूमिका में आ जायेगी जातीय सर्वेक्षण के बाद जो वैश्य समाज मे फुट पड़ी या फुट डालने की कोशिश हुई समाज उसको नाकाम कर अपनी एकजुटता संगठित ताकत को बरकरार रख अपना हक हुक़ूक़ अधिकार की रक्षा के लिये राजनीति में आवश्यक हस्तक्षेप करे तभी उसे मंजिल और मुकाम मिलेगा यह किसी संगठन और किसी नेता के बलबूते नहीं बल्कि खुद के जागरुकता और संकल्प से होगा।