मंत्र,संत एवं भगवान की परीक्षा विनाश का सूत्रधार:जीयर स्वामी
चंद्रमोहन चौधरी ।
बिक्रमगंज प्रखंड के बरना में आयोजित श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के तीसरे दिन संत श्री जीयर स्वामी जी महाराज अपने निवेदन में मंत्र, संत एवं भगवान की परीक्षा को विनाश का सूत्रधार बताया। विषय के संदर्भ में उन्होंने कहा कि जिसने ऐसा करने का दुस्साहस किया उपहास अथवा कष्ट का पात्र बना। इसके लिए महाभारत का प्रसंग रखते हुए कहा कि मर्यादा का पालन कुंती ने नहीं किया था। जिसके चलते उनको विवाह से पूर्व संतानोत्पत्ति का दंश झेलना पड़ा था। कुंती ने मर्यादा का पालन नहीं किया और मंत्र की परीक्षा लेनी शुरू कर दी। जिसका परिणाम यह हुआ की कुंवारी अवस्था में हीं उसे कर्ण के रूप में पुत्र को प्राप्त करना पड़ा।
अतः किसी भी व्यक्ति को मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए।किसी भी परिस्थिति में मंत्र की, संत की तथा भगवान की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। हर व्यक्ति को मर्यादा के अंतर्गत अपना जीवन यापन करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। विषम परिस्थिति में भी मर्यादा का पालन करते रहना चाहिए। क्योंकि मर्यादा ही सम्पूर्ण मानवों की शोभा है।मर्यादा के अभाव में मनुष्य पशु समान हो जाता है।जिस प्रकार जल विहीन नदी का कोई अस्तित्व नहीं रह जाता। उसी प्रकार मर्यादा के बिना मनुष्य का भी कोई अस्तित्व नहीं है। जो विषम परिस्थितियों में भी मर्यादा का पालन करते हैं, धर्म का पालन करते हैं, माता-पिता का आदर करते हैं, स्त्री का सम्मान करते हैं, बुजुर्गों का सम्मान करते हैं उन पर लक्ष्मी नारायण भगवान की कृपा बनी रहती है। और उनका परिवार विकास करता है।
वर्तमान की सामाजिक विसंगतियों पर निवेदन करते हुए उन्होंने कहा कि सबको आपस में प्रेम और सद्भाव के साथ जीवन जीना चाहिए। भरत के चरित्र को जीवन में उतारना चाहिए।भाई भरत के चरित्र का पूजा किया जाए और एक भाई से बेईमानी किया जाए यह उचित नहीं है। जिस प्रकार त्रेता द्वापर में एक भाई दूसरे भाई के लिए त्याग की भावना रखते थे।उसको जीवन में उतारना चाहिए। और अपने परिवार के लिए अपने भाई के लिए अपने समाज के लिए मन में त्याग की भावना रखनी चाहिए। स्वामी जी महाराज ने कहा कि एक भाई से बेईमानी कर धन उपार्जन कर कबूतर को दाना खिलाने से कोई फायदा नहीं हो सकता।