न्यायालय ने शिक्षामित्र से बने पंचायत शिक्षक नियमावली को किया निरस्त

दिवाकर तिवारी ।

रोहतास। जिले के दिनारा प्रखंड अंतर्गत मैरा गांव निवासी एवं मध्य विद्यालय सुरतापुर में पदस्थापित प्रखंड शिक्षिका रेनू कुमारी के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील वाद संख्या – 5414/ 2016 में अंतिम सुनवाई करते हुए माननीय न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी एवं माननीय न्याय मूर्ति के. वी. विश्वनाथन की संयुक्त न्यायपीठ द्वारा पटना उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले डबल बेंच के निर्णय को निरस्त करते हुए एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखा है। अपने आदेश में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार सरकार के उस निर्णय को समाप्त कर दिया कि वर्ष- 2006 में बिहार पंचायत प्रारंभिक शिक्षक नियमावली लागू होने के बाद पंचायत शिक्षामित्र से बने पंचायत/ प्रखंड शिक्षक अवैध पाए जाते हैं, तो उन्हें हटाकर उनके स्थान पर उचित अभ्यर्थी की बहाली नहीं हो सकती। नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत और भारतीय संविधान के मूल समानता के अधिकार की अवहेलना करने वाले बिहार सरकार के इस कानून को खत्म करते हुए भारतीय संविधान के रक्षक माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपीलार्थी शिक्षिका रेनू कुमारी के पक्ष को एकदम सही माना और उनकी सेवा निरंतर रखने का आदेश पारित किया है।
विदित हो कि वर्ष- 2005 में दिनारा प्रखंड के सैसड़ ग्राम पंचायत के मैरा गांव निवासी रेणु कुमारी को पंचायत शिक्षा मित्र के पद पर बहाल करके योगदान करने के लिए कार्यालय मुखिया ग्राम पंचायत सैसड़ की ओर से पत्रांक 9 दिनांक 08.07. 2005 नियुक्ति पत्र दिया गया था। फिर एक-दो दिनों के बाद पंचायत के मुखिया जितेंद्र पाठक ने यह कहकर मूल नियुक्ति पत्र वापस मांग लिया कि इस पर प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी एवं प्रखंड विकास पदाधिकारी से प्रति हस्ताक्षरित कराना है और उन्हें देने के लिए ₹10000 घूस भी मांगा। जिसका आवेदिका रेणु कुमारी ने कड़ा प्रतिवाद किया। फिर मुखिया छल- कपट पूर्वक नियुक्ति कार्यवाही पंजी में व्हाइटनर लगाकर दूसरे कम नंबर वाली अभ्यर्थी का नाम लिखकर उसी पत्रांक दिनांक वाला नया नियुक्ति पत्र जारी करके विद्यालय में योगदान करा दिया। आवेदिका रेणु कुमारी शिकायत पत्र लेकर कार्यालय दर कार्यालय दौड़ती रही। परंतु, बिहार के इस भ्रष्ट और जर्जर तंत्र के आगे उनकी आवाज दबाई जाती रही। लोकायुक्त भी जांच करने में असफल रहे। अंततः पटना हाईकोर्ट के आदेश के बाद जिला पदाधिकारी, रोहतास ने अपने न्यायालय में सुनवाई करके आवेदिका का पक्ष सही माना और कम नंबरों के आधार पर नियुक्त महिला को हटाने का आदेश दिया। लेकिन रेणु कुमारी की बहाली यह कहते हुए नहीं की गई कि नियमावली के तहत हटाया तो जा सकता है लेकिन उस जगह को रिक्त रखा जाएगा। ऐसी स्थिति में आवेदिका पुनः पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाई, तब बहाल करने का आदेश हुआ और योगदान कराया गया। उधर विरोधी पक्ष डिवीजन बेंच में गए। डिवीजन बेंच से विरोधाभासी आदेश आया, जिसके विरुद्ध शिक्षिका रेणु कुमारी माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दाखिल की। जहां पर स्टे मिला और केस सिविल अपील में बदल गया। सुप्रीम कोर्ट से मिली जीत से उत्साहित शिक्षिका रेनु कुमारी का कहना है कि बिहार सरकार के भ्रष्ट तंत्र के प्रतिरोध में मिली यह सफलता “सत्यमेव जयते” की विचार को पुष्ट करती है। वहीं रोहतास जिला के राजपुर निवासी और सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली में अपीलार्थी की ओर से जोरदार पक्ष रखने वाले वरीय अधिवक्ता मनीष कुमार ने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला उन याचिकाकर्ताओं के लिए राहत भरा हो सकता है, जिनके मामले बिहार सरकार द्वारा वर्ष 2006 में संशोधन और पद समाप्ति के कारण शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होने को चुनौती देते हुए माननीय पटना उच्च न्यायालय और माननीय सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं।

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