जिले के प्रसिद्ध जंगली मैं राज देवी मंदिर की महिमा अपार शक्ति है
गजेंद्र कुमार सिंह ।
शिवहर—- जिले में मां दुर्गा के भक्ति के अनेक रूप हैं। शारदीय नवरात्र में पूरा जिला में भक्ति का माहौल है। हर देवी देवताओं की पूजा आराधना पूरे तन मन धन से की जा रही है।शिवहर नगर परिषद क्षेत्र के न्यू पुलिस लाइन के पास काफी पुराना जंगली राज देवी मंदिर जो सातों बहने जगदंबा की स्वरूप है, उनकी पूजा आराधना पूरे भक्ति के साथ की जा रही है।मंदिर के पुजारी जगन्नाथ राउत ने बताया है कि माता की महिमा अपरंपार है ।मनोकामना पूर्ण होने पर भक्तों के द्वारा बकरे की बलि दी जाती है। यह बलि तो बराबर होता है परंतु नवरात्र के सप्तमी ,अष्टमी एवं नवमी को बलि देने की परंपरा आज भी जारी है ।(हालांकि बलि प्रथा पर रोक लगी हुई है)उन्होंने बताया कि महारानी बैसाखा कुंवर के द्वारा जंगली राज देवी मंदिर के महिमा को देखते हुए 27 कट्ठा जमीन मंदिर के नाम रजिस्ट्री की थी। मंदिर के विकास को लेकर सरकार के द्वारा पहल भी की गई। ठेकेदार के द्वारा मंदिर की घेराबंदी भी की गई। लेकिन कुछ अतिक्रमणकारियों के द्वारा 27 कठा जमीन में से 22 कठा जमीन को अतिक्रमण भी कर लिया गया है।
उन्होंने मंदिर के महिमा को बताते हुए कहा है कि पहले मंदिर के चारों तरफ जंगल ही जंगल था। जीरो माइल चौक से ही रात में माता का अरघा जब उठता था तो लोग देखते थे । माता के अरघा को वहीं से उनको शीश झुका कर नमन् करते थे। राज देवी माता एक ही पल में अपने अरघा के रूप से शहर के चारों तरफ दिखाई देती थी ,जैसे शहर की रक्षा कर रही हो।पुजारी ने बताया है कि मंदिर की विशेष साफ सफाई कराई गई है। श्रद्धालुओं के द्वारा पीने के लिए चापाकल उपलब्ध कराया गया है। तात्कालीक नगर परिषद के अध्यक्ष अंशुमान नन्दन सिंह के द्वारा कुएं का जीर्णोद्धार कराया गया। कुएं के अंदर अनेकों कछुआ है ,जिसे लोग दर्शन कर अपने आप को धन्य समझते हैं।जंगली राज देवी मंदिर में जो मनोकामना लेकर आते हैं उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। और वे मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। मंदिर के सबसे पहले शिवहर शहर के ही पुजारी स्वर्गीय लंगट रावत पिता गोरी राउत थे। समय-समयपर वहां कीर्तन ,भजन होते रहते हैं। आसपास के लोग संध्या आरती एवं सुबह में दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में मंदिर में पहुंचते हैं। मां पिंडा रूप में विराजमान है।आज मां दुर्गा जी के सातवीं शक्ति कालरात्रि की पूजा की जा रही है। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है लेकिन यह सदैव शुभ फल ही देने वाली है।दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्त्राचार चक्र में स्थित रहता है इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियो का द्वार खुलने लगता है।मंदिर के स्थापना के लिए 27 कट्ठा जमीन शिवहर राजदरबार की महारानी बैशाखा कुंवर ने दान दी थी।मनोकामना पूर्ण होने पर बकरे की बलि देने की आज भी परम्परा जारी है । (हालांकि बलि प्रथा पर रोक लगी हुई है)