क्या देश भावनाओं से संचालित होगा या संविधान से- लेखक राकेश कुमार

विश्वनाथ ।
औरंगाबाद( बिहार)- आज के वजह भारत बंद हो गया. किसने किया? कौन किया? कारण क्या रहा? इसका खास पता तो नहीं चल पाया किन्तु भारत बंद जरूर हो गया. अब जब चाहो, जैसे चाहो सोशल मीडिया पर भारत बंद का आह्वान कर भारत बंद कर दो?
-बिहार में नीतीश सरकार ने आरक्षण को कई संवर्गों में विभाजित कर सामाजिक न्याय तक पहुंच को अलग दिशा दी है वहां तो कभी बिहार बंद नहीं बुलाया गया .
मुझे तो यह संशय होने लगा कि क्या भारत का शासन तंत्र, कानून और व्यवस्था संविधान से संचालित होता है?
बिल्कुल भी संचालित नहीं होता है-संविधान से. यह दावे के साथ कहा जा सकता है.
संविधान में विधान बनाने की शक्ति संसद को दिया है जबकि विधान की तर्कसंगतता और विधान की वैधानिकता को जाँचने और पुनर्विलोकन की शक्तियाँ सर्वोच्च न्यायालय को दिया गया है. विधान की व्याख्या की शक्तियाँ भी संविधान में ‘हम भारत के लोगों ने’ सर्वोच्च न्यायालय को दे रखा है किन्तु सर्वोच्च न्यायालय अगर किसी विधान की विसंगति, तर्कसंगतता और प्रासंगिकता की व्याख्या करता है तो ‘भारत बंद’ कर दिया जाता है.
अगर बतौर नागरिक हमारे मूल अधिकारों का हनन सरकार या प्राधिकार करता है तो ‘हम भारत के लोगों’ को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों पर पूरा भरोसा होता है. अपराधी से लेकर आम आदमी तक यह कहते नहीं थकते कि मुझे न्यायालय पर पूरा भरोसा है.
क्या देश भावनाओं से संचालित होगा या संविधान से? मुझे तो ऐसा प्रतीत होने लगा है कि अब भारत में संविधान और विधान को ताख पर रख दिया जाएगा और भावनाओं को पूर्ण आधार बना लिया जाएगा.

https://www.youtube.com/watch?v=_ngCl5mvFcA
बात उन्नसवीं शताब्दी के पूरे दशक के उतरार्ध की है. भारत में सती प्रथा के अंत के लिए ‘ब्रह्म समाज’ और राजा राममोहन राय प्रयासरत थे. जनमत निर्माण हेतु समर्थन और विरोध में पत्र आमंत्रित किया गया था. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सती प्रथा के समर्थन में जनभावना उमड़ पड़ी थी. लोगों ने सती प्रथा के समर्थन यानी इस कुरीति को जारी रखने के लिए इस कानून के अंत के लिए समर्थन करने वालों से ज्यादा पत्र प्राप्त हुए थे.
तब के समाज का जनभावना सती प्रथा को जारी रखना चाहता था किन्तु इसके बावजूद भी सती प्रथा के अंत हेतु कानून बना.

एक बात और कि बाबा साहेब ने सामाजिक न्याय हेतु आरक्षण को अंशकालिक व्यवस्था स्वीकार किया था किन्तु राजनीतिज्ञों ने उनकी ही भावना के साथ खिलवाड़़ कर वोट बैंक के लिए इसे अनंतकालीन बना दिया. राजनीतिज्ञों ने स्वतंत्र भारत में बहुआयामी विकास को दरकिनार कर दिया और समाज को झुनझुना थमा दिया-‘आरक्षण का’.
बिहार में नीतीश सरकार ने आरक्षण को कई संवर्गों में विभाजित कर समाजिक न्याय तक पहुँच को अलग दिशा दी है, वहाँ तो कभी बिहार बंद नहीं बुलाया गया,जहाँ तक मुझे जानकारी है. उक्त बातें राकेश कुमार लेखक(लोकराज के लोकनायक और आधुनिक भारत शिवाजी से गाँधी तक) की बातों को रखने वाले ने कहीं.