ख़ुदीराम बोस सबसे कम उम्र में शहीद होने वाले भारतीय क्रांतिकारी थे

मनोज कुमार ।
महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिवीर योद्धा, सबसे कम उम्र में शहीद होने वाले ख़ुदीराम बोस की 116 वीं शहादत दिवस गया के स्थानीय अनुग्रह नारायण रोड स्थित दुबे आश्रम में मनाई गई।सर्वप्रथम ख़ुदीराम बोस के चित्र पर माल्यार्पण के पश्चात्‌ उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया।इस अवसर पर उपस्थित बिहार प्रदेश कॉंग्रेस कमिटी के प्रदेश प्रतिनिधि सह प्रवक्ता प्रो विजय कुमार मिट्ठू, पूर्व विधायक मोहम्मद खान अली, जिला कॉंग्रेस उपाध्यक्ष बाबूलाल प्रसाद सिंह, विनोद सिन्हा उर्फ बाबा, दामोदर गोस्वामी, प्रद्युम्न दुबे, शिव कुमार चौरसिया, विपिन बिहारी सिन्हा, कुंदन कुमार, विशाल कुमार, श्रीकांत शर्मा, विनोद उपाध्याय, बाल्मीकि प्रसाद, बलिराम शर्मा आदि ने कहा कि ख़ुदीराम बोस महज 18 वर्ष 08 महीने 08 दिन की उम्र में उन्हें 11 अगस्त को मुजफ्फरपुर जेल में फांसी दी गई थी।

नेताओं ने कहा कि पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिला के हबीबपूर गांव से बिहार के मुजफ्फरपुर आकर 18 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस मुजफ्फरपुर के जज किंग्सफोर्ड को मारने के उदेश्य से उन्होंने जज के बगही पर बम फेंकने का काम किया, परंतु जज तो बच गया परंतु बगही पर सवार उनके परिवार की दो महिलाये मारी गई।नेताओं ने कहा कि जब इन्हें कोर्ट में उपस्थित करा कर फांसी की सजा के लिए इनके वकील बहस करते हुए कहे कि हुजूर मेरा मोवकील ख़ुदीराम अभी छोटा लड़का है, इसे बम बनाने नहीं आता है, ये बम कैसे फेंकेगा, जिस पर ख़ुदीराम बोस ने अदालत में कहा कि नहीं जज सहाब मैं बम बनाना जनता हूं, आप कहे तो आपको भी मैं बम बनाना सीखा दूँगा, जिसे सुन कर जज ने तुरंत इन्हें फांसी की सजा सुना दी थी, जो आगे भी उच्च न्यायालय में सजा बरकरार रहने के कारण इन्हें फांसी की सजा हुई, जिनके नाम पर मुजफ्फरपुर केन्द्रीय कारा का नामकरण किया गया है ।नेताओं ने केन्द्र एवं राज्य सरकार से ख़ुदीराम बोस की जीवनी पाठ्यक्रम में शामिल करने तथा आज के दिन शहादत दिवस पर सभी शिक्षण संस्थानों में इनके जीवनी पर विचार गोष्टी एवं देश भक्ति कार्यक्रम आयोजित कराने की मांग किया।

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