ऊर्जा विभाग में भ्रष्टाचार की ज़िम्मेदारी मंत्री की: अनुपम

राजीव सिंह ।

* मंत्री बिजेंद्र यादव पर भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग का बड़ा आरोप

* जांच के दौरान पद पर बने रहना अनैतिक, ऊर्जा मंत्री दे इस्तीफा: अनुपम

बिहार सरकार के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव पर ‘युवा हल्ला बोल’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुपम ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं। राजधानी पटना में हुए प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय युवा नेता अनुपम ने बिजेंद्र यादव द्वारा सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के सबूत पेश किए। मंत्री बिजेंद्र यादव ने पिछले 34 वर्षों से लगातार विधायक रहते हुए सुपौल में सिर्फ भ्रष्ट अधिकारियों, ठेकेदारों और दलालों का विकास किया है। लेकिन हैरत की बात है कि कोसी क्षेत्र में भ्रष्टाचार का संरक्षक होने के बावजूद मंत्री जी ने सफेदपोश समाजवादी की एक नकली छवि बना रखी है। प्रेस वार्ता में ठोस सबूत पेश करते हुए अनुपम ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग किया कि बिजेंद्र प्रसाद यादव का इस्तीफा लिया जाए। सरकार में मंत्री रहते हुए उनपर लगे गंभीर आरोपों की निष्पक्ष जांच नहीं हो सकती। जांच के दौरान पद पर बने रहना अनैतिक ही नहीं, प्रशासनिक दृष्टि से भी अनुचित है।ज्ञात हो कि बिहार सरकार का ऊर्जा विभाग आजकल गलत कारणों से चर्चा में है। विभाग के प्रधान सचिव सह सीएमडी संजीव हंस प्रवर्तन निदेशालय के रडार पर है। हर तरफ ऊर्जा विभाग की किरकिरी हो रही है, लेकिन मंत्री बिजेंद्र यादव की चर्चा तक नहीं है। कमाल की बात है कि लंबे समय से जिस ताकतवर मंत्री के पास ऊर्जा विभाग का जिम्मा है, उन्होंने अपने प्रिय अधिकारी पर अब तक कोई एक्शन नहीं लिया। एक्शन तो दूर की बात, मंत्री जी द्वारा आरोपी अधिकारी पर जांच की अनुशंसा या सवाल भी पूछा गया हो ऐसी हमें जानकारी नहीं।

अनुपम ने कहा कि ऊर्जा विभाग पर लगे संगीन आरोपों से मंत्री बिजेंद्र यादव बचकर निकल नहीं सकते। गुलाब यादव के साथ संजीव हंस के पार्टनरशिप की तो खूब चर्चा हो रही है। लेकिन इससे बड़ी पार्टनरशिप बिजेंद्र यादव और उनके प्रिय आईएएस हंस के बीच है। फिर भी अगर प्रवर्तन निदेशालय मंत्री जी से पूछताछ नहीं करती तो ईडी की जांच भी दिखावा ही है। आईएएस संजीव हंस ऊर्जा मंत्री जी के अत्यंत करीबी माने जाते हैं। जिलाधिकारी के रूप में हंस का पहला पदस्थापन सुपौल में हुआ था। तब से ही उनकी सुपौल विधायक बिजेंद्र प्रसाद यादव के साथ सांठगांठ बनी हुई है। प्रीपेड मीटर से लेकर बिजली विभाग में ठेकों के आवंटन भी सवालों के घेरे में है। अनुपम ने पूछा कि बिजेंद्र यादव में आखिर ऐसी कौन सी विलक्षण प्रतिभा है जो पिछले 33 वर्षों से बिहार में किसी और को ऊर्जा मंत्री लायक समझा नहीं गया। कहा जाता है कि किसी अधिकारी को तीन साल से अधिक एक पद पर नहीं रहना चाहिए। लेकिन बिजेंद्र यादव शायद देश के एकमात्र मंत्री हैं जो इतने लंबे समय से एक ही विभाग के कर्ताधर्ता बने हुए हैं।

प्रेस वार्ता को अनुपम के अलावा ‘भ्रष्टाचार मुक्त कोसी जागरूकता अभियान’ के संयोजक अनिल कुमार सिंह समेत ‘युवा हल्ला बोल’ महासचिव प्रशांत कमल और कार्यकारी अध्यक्ष गोविंद मिश्रा ने भी संबोधित किया। आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल कुमार सिंह ने बताया कि बिजेंद्र यादव ने सुपौल में पूरे सिस्टम को हाईजैक कर रखा है। उनकी मर्जी के बिना पत्ता नहीं हिलता और पूरा प्रशासन नतमस्तक रहता है। क्योंकि मंत्री जी की पहचान है कि विरोधियों को कुचलने में वो किसी हद तक जा सकते हैं। जो भी अधिकारी या नागरिक इनके समक्ष आत्मसमर्पण नहीं करते, उनपर प्रशासनिक अमले का दुरुपयोग करना इनके लिए आम बात है। असल में अधिकारी इनको भ्रष्ट पसंद है, ठेकेदार इनको पिसी देने वाला पसंद है और नागरिक इनको घुटने टेकने वाला पसंद है।

सत्ता और प्रशासनिक ताकत का दुरुपयोग करके बिजेंद्र प्रसाद यादव ने अपने सगे संबंधियों और करीबियों को खूब फायदा पहुंचाया है। कोसी क्षेत्र को लूट खसोट का अड्डा बना दिया और स्वयं भ्रष्टाचार के संरक्षक बन गए। इन कारनामों के अलावा शपथ पर झूठ बोलना भी मंत्री जी की आदतों में शुमार है। लेकिन प्रशासन पर ऐसा कब्जा है कि कोई इनका कुछ बिगाड़ नहीं पाया।

1) अपनी शैक्षणिक योग्यता को लेकर हर चुनावी घोषणा में खुद को स्नातक विज्ञान बताया जो 2020 विधानसभा चुनाव में घटकर इंटर पास हो गया

2) अदालत द्वारा 1992 के एक मामले को लेकर वर्ष 2000 में मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव को फरार घोषित कर दिया गया। वर्ष 2000 से 2006 तक वो फरार रहे, इस बीच 2005 में चुनावी नामांकन में इस मामले का जिक्र ही नहीं किया। कार्यपालक दंडाधिकारी ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर उनके फरार होने की बात कही लेकिन प्रशासन इसपर भी हमेशा के लिए सुस्त हो गया और नेताजी पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।

निम्नलिखित मामलों में सत्ता का दुरुपयोग कर भ्रष्ट तरीकों से मंत्री के सगे संबंधियों और करीबियों को फायदा पहुंचाया गया

1) वीरेंद्र कुमार उर्फ बिनोद भगत मंत्री जी के सरकारी पीए थे जो रिटायर होने के बाद प्राइवेट पीए हो गए हैं। विनोद भगत के साले अखिलेश्वर भगत को बिजली विभाग के सरकारी कार्यों का ठेका मिलता है। उनका दूसरा साला योगेश भगत विनोद भगत की कंपनी का कर्ताधर्ता है।
विनोद भगत का अपना भाई टुनटुन भगत शराब कारोबारी है जो 21 मार्च 2024 को केस संख्या 68/2024 में गिरफ्तार हुआ। मंत्री के पीए ने प्रशासन का दुरुपयोग कर फर्जी ढंग से ज़मीन रजिस्ट्री करवाया। विनोद भगत का चचेरा भाई चंदन भगत बिजली विभाग सहित सभी कार्यालयों में मैटेरियल (जैसे कंप्यूटर, फर्नीचर) आपूर्ति देने का काम करता है।

2) मंत्री बिजेंद्र यादव के बेटे विकास यादव का साला प्रकाश पथ निर्माण विभाग (कैलाश प्रसाद यादव कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड), ग्रामीण कार्य विभाग, सिंचाई, LAEO में ठेका लेता है l इनकी कंपनी 500 करोड़ से अधिक का काम करती है। यह जिस भी कंपनी में निविदा डालता है, उनमें इसका पार्टनर NKSP प्राइवेट लिमिटेड भी निविदा डालता है। ज्यादातर मामलों में बाकी कंपनियों के निविदा रद्द हो जाते हैं और टेंडर इन्हें ही मिल जाता है।

3) बिजेंद्र यादव के बेटे नरेश कुमार ने प्रशासन का दुरुपयोग कर बिहार सरकार की जमीन को छह लोगों के साथ खरीदा। नरेश कुमार के जमीन के दाखिल खारिज पर राजस्व अधिकारी ने 9 जुलाई 24 को आपत्ति दर्ज किया। लेकिन 11 जुलाई को जिलाधिकारी कौशल कुमार के द्वारा राजस्व अधिकारी स्नेहा कुमारी के विरुद्ध एक ही दिन में 4 पत्र निर्गत किया गया। अगले ही दिन 12 जुलाई को सुपौल डीएम ने उनका वेतन स्थगित कर अनुशासनिक कारवाई करने की चेतावनी दी। 13 जुलाई को दूसरी CO बुच्ची कुमारी द्वारा दाखिल खारिज कर दिया गया।

इन उदाहरणों से यह समझा जा सकता है कि मंत्री बिजेंद्र यादव के लिए सत्ता का दुरुपयोग और प्रशासन पर कब्जा कितनी आम बात है। अनुपम ने मांग किया है कि ऊर्जा विभाग में ठेकों के आवंटन से लेकर मंत्री जी के विधानसभा क्षेत्र सुपौल में ज़मीन की खरीद फरोख्त तक की स्वतंत्र जांच हो। जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती, उनका पद पर बने रहना न ही नैतिक रूप से उचित है और न ही प्रशासनिक दृष्टि से। प्रवर्तन निदेशालय की जांच अगर मंत्री जी तक नहीं पहुंचती और सिर्फ उनके प्रिय आईएएस तक सीमित रह जाती है तो वो भी एक छलावा ही है। लंबे समय से सत्ता का सुख भोग रहे नेताओं पर नागरिकों और जांच एजेंसियों को अधिक सक्रिय रहना चाहिए।