बिहार के थानों में बिन दलाल कुछ नहीं होता मतलब पत्ता भी नहीं हिलता

संजय वर्मा।

बिहार के थानों में बिन दलाल कुछ नहीं होता मतलब पत्ता भी नहीं हिलता एफआईआर दर्ज करानी हो डायरी लिखवानी हो हर प्रकार के अवैध धंधे दारुबिक़वानी हो जुए या गेसिंग चलवानी हो या अवैध मिट्टी कटाई या बालू का उत्खनन समेत जो भी करना हो थानाध्यक्ष पर्दे के पीछे होता है और दलाल साक्षात थानाध्यक्ष अपना टारगेट दलाल को दे देता है। दलाल अपना हिसाब जोड़कर पार्टी से सब तय तमन्ना करता है मतलब थानाध्यक्ष पीछे और दलाल फ्रंट पर खेलता हो अपने गाँव खुसरूपुर थाना को ही उदाहरण ले लें तो लगभग चार दशक से थाना की दल्लाली पत्रकार बन करता आ रहा ।

सोना उठना बैठना दिनरात थाना में अगोरिया दिये रहता गलती से एक भी क्लाइंट छूट न जाय कुछ वर्षों से दल्लाली के इस धंधे में भाई भतीजा भी उसका साथ दे रहा जिस तरह मछुआरा मछली मारने के लिये नदी में वंशी के साथ जाल नदी में विचाये होता उसी तरह यह दलाल बिन मुह धोए थाना में अहले सुबह विराजमान हो जाता है। खुसरूपुर थानाक्षेत्र में वो सारे कुकर्म अवैध धंधे होते है जिनका जिक्र ऊपर किया थाना पूरी तरह दलालों के चंगुल में है तो सरकार का कानून का राज सुशासन कैसे स्थापित होगा सरकार को सख्त हिदायत देना चाहिये कि थाना को दलाल मुक्त रखे वरना सस्पेंड के लिये तैयार रहें।