अब भी वैश्य समाज का हिस्सा है यह परम्परागत तरीके से भाजपा की गुलाम रही है

संजय वर्मा।

बिहार में तेली जाति की आवादी जातीय जनगणना में पौने तीन परसेंट आया जबकि इस जाति का दावा यादव मुस्लिम के बाद तीसरी बड़ी आबादी है इसकी खैर दावों का क्या मतलब ई अतिपिछड़ी जाति में है नौकरी से लेकर अन्य मामलों में रिज़र्वेशन का लाभ लेती है पूर्व में या अब भी वैश्य समाज का हिस्सा है यह परम्परागत तरीके से भाजपा की गुलाम रही है अब आते हैं असली मुद्दे पर इस लोकसभा चुनाव में भाजपा या कोई अन्य दलों ने एक अदद तेली को कोई टिकट नहीं दिया तो इसने खुद को वैश्य बताकर वैश्यों की अपेक्षा बता कोहराम मचाया यह वह जाति है जो दोहरा लाभ लेना चाहती है कसम खाया कि भाजपा या एनडीए को कीमत चुकानी होगी सूपड़ा साफ कर देंगे बगैरह बगैरह।

यदि वैश्य की बात करे तो एनडीए या भाजपा ने पत्ता साफ कर दिया पर इंडिया गठबंधन ने खूब महत्व दिया गठबंधन से राजद ने शिवहर से रितु जायसवाल भीआईपी ने झंझारपुर से सुमन महासेठ भाकपा माले से आरा से सुदामा प्रसाद को टिकट दिया कायदे से तेली जाति इन उम्मीदवारों को जिताती या महागठबंधन उम्मीदवार के पक्ष में मतदान करती पर एनडीए भाजपा से लतियाने जुटियाने के बाद भी यह जाति सभी सीटों पर एनडीए को अपना अधिकतम वोट दे रही ऐसा नहीं कि तेली महागठबंधन को साथ नही दे रहा पर उसका अधिकतम 25% तक कहने का अर्थ यह कि ये सुधरने वाली जाति नही है क्योंकि इसको स्वाभिमान क्या चीज वो इसके मगज से बाहर की चीज है।