भारत की आजादी के बाद सरकार ने एजुकेशन व विद्यालय भवन को किया है बेहतरीन- अपराजिता मिश्रा

विश्वनाथ आनंद ।
गया (बिहार )- भारत में आज़ादी के बाद सभी सरकारों ने एजुकेशन पर बेहतरीन बल दिया, “स्कूल चलें हम” और “बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियानों ने इस क्षेत्र में अपनी भूमिका निभाते हुए भारत के एजुकेशन सिस्टम में रीढ़ की हड्डी का काम किया। लेकिन यह सभी उपलब्धियां तब खोखली नजर आने लगती हैं जब इस ज्ञान की मंदिर को चंद माफियाओं द्वारा हाईजैक कर लिया गया हैं। जो दुर्भाग्यपूर्ण है .आज स्थिति यह है की जिस परिवार के आय का एक बड़ा हिस्सा बच्चों की पढ़ाई को समर्पित होता हैं ,उस परिवार को यह नहीं पता होता कि उस हिस्से का महत्वपूर्ण अंग स्कूलों की दलाली और यूनिफॉर्म के जरिए हो रही धांधलियों में ज्यादा वर्थ हो रहा हैं। विद्या को पूजने वाले हमारे भारत में शिक्षा मात्र व्यापार बन कर रह गया हैं। लेकिन किसी भी सरकार, किसी भी पार्टी और किसी भी जनकल्याणकारी योजनाओं द्वारा इन मुद्दों को नहीं टटोला गया। आज स्थिति ये है कि एक ही स्कूल के छात्र एक साल में 2 से 3 यूनिफॉर्म पहनते हैं। क्या ये अनिवार्य नहीं होना चाहिए कि जिस प्रकार वन नेशन वन इलेक्शन की बातें चारों ओर चल रही है ।

उससे पहले वन नेशन वन एजुकेशन की बात हो और यह सिर्फ सिलेबस तक ही सीमित ना रहें, कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी छात्रों का एक ही ड्रेस कोड हो, सभी कॉलेज का एक ड्रेस कोड और इस ड्रेस के जरिए हो रही करोड़ों अरबों की धांधली से भारत के भविष्य को सुरक्षित किया जाए।शिक्षा के लिए पूरी तौर पर समर्पित अभिभावको को इस माफिया तन्त्र से मुक्ति दिलवाना ही शिक्षा की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी, प्राइवेट स्कूलों की इस धंधे ने पूरे विद्यालयों का ध्यान ज्ञान से हटा कर कमाई की ओर धकेल दिया हैं।ड्रेस और डिसिप्लिन के नाम पर अभिभावकों के साथ यह बेलगाम शोषण भारतीय शिक्षा पद्धति पर अदृश्य कलंक पूरी शिक्षा पद्धति को खोखला किए जा रही है, यह मुद्दे अन्य किसी भी मुद्दों से श्रेष्ठ और कल्याणकारी हैं।न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि। व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्. अर्थात एक ऐसा धन जिसे चुराया नहीं जा सकता, जिसे कोई भी छीन नहीं सकता, जिसका भाइयों के बीच बँटवारा नहीं किया जा सकता, जिसे संभलना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है और जो खर्च करने पर और अधिक बढ़ता है, वह धन, विद्या है।इसलिए एक भारत एक शिक्षा पद्धति को ज़ोर देने का समय आ गया हैं, और जिस विश्वगुरु का सपना भारत का बच्चा बच्चा देख रहा है उसे यथार्थ में लाने का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग यही है, जिससे सिर्फ भारत के छात्रों का ही नहीं पूरे भारत का भी भविष्य सुरक्षित होगा।