इक पन्ना “सामाजिक न्याय” का मेहतर मिष्ठान भंडार

विशाल वैभव ।

अब जब चंद्रयान -३ भी दर्ज हो चुका है हमारे देश में, तो क्या हम इक कल्पना कर सकते है “मेहतर मिष्ठान भंडार कोऑपरेटिव सोसाइटी” की कल्पना. जिसका स्वामित्व, प्रबंधन और संचालन सभी मेहतर जाति द्वारा किया जाए और जिसे सभी जो लोग जो जाति का विनाश करना चाहते है के लोगों द्वारा वित्तीय व कौशल की सहायता व अन्य समर्थन प्राप्त हो। यदि हम ऐसा कल्पना कर सकते हैं तो इसको वास्तविकता में बदलने में भी वक्त नहीं लगेगा।क्या यह अग्रवाल/शर्मा स्वीट्स से भी बड़ा ब्रांड बन सकता है? हाँ बन सकता है क्यूँ नहीं बन सकता और बनना भी चाहिए। और साथ ही यह जाति को भी नष्ट करने की क्षमता रखता है। जाति का वास्तविक विनाश तब होगा जब सबसे निचले पायदान पर रहने वाली जाति के पास संसाधन और पैसा होगा। और न भी जाति का विनाश हो तो यह इतना तो करेगा की वर्ण व्यवस्था के सबसे निम्न वर्ण के सबसे नीचे की जाति के साथ न्याय करेगा।

मैं बस सोच रहा हूं कि जातिवादी लोग इसे कैसे रोकेंगे या इसके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। वे चीनी, अनाज व अन्य सामग्री आदि को रोकने की कोशिश करेंगे तथा संसाधनों को उपलब्ध होने से रोकेंगे, मानव संसाधन तो नहीं रोक पाएंगे। पर क्या रोक पाएंगे यदि लोग ठान ले कि उन्हें अब मेहतर मिष्ठान भण्डार के ही मिठाई खानी है।और सोच रहा हूं कि विरोध में लोग किस किस तरह के तर्क देकर प्रोपगंडा करेंगे. सफाई करने वाले लोग महंगे हो जायेंगे लेकिन इसको गौर से समझे तो समझ में आएगा कि भारत की अर्थव्यवस्था और जाति आपस में जुडी हुई है। और जो खुलेआम जातिवाद करते हैं वो तो यह कहने में बिलकुल शर्म नहीं करेंगे की सफाई कौन करेगा फिर, जैसा सफाई का ठेका बस इक जाति ने ही ले रखा है और साथ में अपमान और गाली खाने का ठेका भी ले रखा है और सफाई करते करते कभी भी मर जाने का ठेका भी उनका ही है ताकि वाकी लोगों को सफाई मिल सके।पर सवाल तो रहेगा कि जब यह कल्पना सच्चाई में बदलेगी तो सफाई का क्या होगा। पहला सवाल तो इस सवाल पे उठना चाहिए कि सफाई कि बात उठते ही जात पे चर्चा क्यूँ? सच्चाई यह है की मिठाई की कोई जाति नहीं होती और सफाई की भी कोई जाति नहीं होनी चाहिए और यदि ऐसा हुआ तो देश तो चमक ही जाएगा सफाई से और साथ ही साथ सफाई से बनी मिठाई भी मिलेगी खाने को ।

बहुत कुछ उसी तरह जैसे एक चुनौतीपूर्ण वातावरण किसी खिलाड़ी को अस्थायी रूप से प्रभावित करता है, लेकिन खिलाड़ी अंततः उस वातावरण को आकार देता है, इस पहल को शुरुआत में थोड़े समय के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन अंततः यह भारत के भविष्य को नया आकार दे सकता है, और भारत को सामाजिक और आर्थिक रूप से नई ऊंचाइयों पर ले जा सकता है।

मेहतर मिष्ठान भंडार एक नए व्यवसाय से कहीं अधिक का प्रतिनिधित्व करता है। यह अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत भारत की दिशा में एक साहसिक कदम का प्रतीक है।

(लेखक बाबू आईआईटी पास आउट हैं। लगभग दो दशक तक निजी क्षेत्र में काम करके आजकल जाति का विनाश चाहने वाले लोगों के सहयोग से मेहतर मिष्ठान भंडार कोआपरेटिव सोसाइटी को आकार देने में लगे हुए हैं

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