राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की स्मृति सह सम्मान समारोह का किया गया आयोजन- कवि मोहम्मद अबरार आलम

विश्वनाथ आनंद ।
गया( बिहार )-राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की स्मृति सह सम्मान समारोह का आयोजन किया गया । इस अवसर पर कवि शायर मोहम्मद अबरार आलम की पुस्तक अल्फाज का सफर का विमोचन कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय मंत्री जितेंद्र राम मांझी , सेवानिवृत आईपीएस राज्यबर्धन शर्मा , राजभाषा विभाग के अध्यक्ष सुरेश चंद्र , पूर्व मंत्री अवधेश सिंह, पूर्व कुलपति प्रोफेसर कुसुम कुमारी, राय मदन किशोर, स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज, ज्ञान भारती रानीगंज ,टिकारी रोमित कुमार, कार्यक्रम के संयोजक हिमांशु शेखर, जगजीवन कॉलेज प्राचार्य सत्येंद्र प्रजापति के कर कमल द्वारा मोहम्मद अबरार आलम, प्राचार्य रामेश्वर प्रसाद प्लस टू उच्च विद्यालय बेलागंज गया की पुस्तक अल्फाज के सफर का विमोचन किया गया।इस अवसर पर पूर्व मंत्री अवधेश कुमार सिंह ने अबरार की कविता का उल्लेख अपने संबोधन में कर कहा कि कवि दिनकर के से प्रभावित दिखाई पड़ते हैं। वे सत्ता और सरकार की आंखों में डालकर बेरोजगारी की समस्या का हल चाहते हैं। वही पूर्व कुलपति प्रोफेसर कुसुम कुमारी ने शायर अबरार को दिनकर से प्रभावित कवि और अपनी ग़ज़ल में समाज के दर्द को व्यक्त करने के लिए धन्यवाद दिया।
इस अवसर पर प्रोफेसर जियाउर रहमान जाफरी ने अबरार आलम की पुस्तक अल्फाज के सफर पर प्रकाश डाला और कहा अबरार की रचनाओं में दर्द भी है, पीड़ा भी है, रोमानियत भी है और सत्ता से सवाल भी है। मो जाफरी ने कहा कि व्यक्तिगत संबंध होने के कारण मैं जानता हूं कि इन्होंने इस पुस्तक को प्रकाशित करने में कई सालों से गुजर कर आज आपके हाथों में है। यह प्रयास इनका काफी सराहनीय है।
पुस्तक विमोचन के अवसर पर मौजूद अबरार आलम को सभी लोगों ने बधाइयां दी जिसमें डॉक्टर राजन, संजय अथर्व, हिमांशु शेखर, पूर्व पार्षद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्येंद्र नारायण, बृजमोहन शर्मा ,सैयद इरशाद अहमद , शायर आफताब आलम, प्रोफेसर इरफान आसिफ इत्यादि शामिल रहे।इस अवसर पर अल्फ़ाज़ का सफर के रचनाकार मो अबरार आलम ने कहा कि दो दशकों से साहित्य की सेवा गुमनाम तरीके से कर रहे थे । मित्रों के आग्रह पर गजलों का संग्रह प्रकाशित कराया है। मो अबरार ने बताया कि इस वर्ष उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं में मेरी तीन पुस्तक और आ रही है। मैं अपनी पीड़ा को समाज की पीड़ा मानता हूं। एक शायर कवि समाज का आईना और दर्पण होता है उसे समझ में जो अच्छाई और बुराई दिखती है उसे वह अपनी साहित्यिक रचनाओं में संकलित कर प्रकाशित करता है l