कल हम भी तस्वीरों में मुस्काते होंगे- डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी

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विश्वनाथ आनंद ।
चढ़ा रहे हैं पुष्प आज हम, मौन पड़ी तस्वीरों पर।
कल हम भी तस्वीरों में, मुस्काते होंगे चुप्पी साध।।
है कितनी विचित्र यह मायानगरी, सोच रहे होंगे?
जीवन-मृत्यु चक्र घूमा करता है जहाँ सतत, निर्बाध।।

हास्य-रुदन का रहता है सिलसिला जहाँ सदैव जारी।
मरने के ही लिए, जन्म पाते हैं जहाँ जीवधारी।।
सोच रहे होंगे, कैसा भयप्रद, दुःखमय है यह संसार!
दिखते हैं शिकार सर्वत्र, नहीं दिख पाता कोई व्याध।।

सोच रहें होंगे, क्यों व्यर्थ गंवाया समय अदावत में?
करते रहे सदा मेहनत, हम जहाँ सुखों की चाहत में।।
जहाँ क्षणिक हैं खुशियाँ, नश्वर जहाँ सभी रिश्ते-नाते।
सोच रहे होंगे क्यूं मिली नियति ऐसी, क्या था अपराध?

जब तक जीवित थे, सबकी आँखों में चुभते रहते थे।
अपमानों की मार तथा पीड़ाएँ हँस-हँस सहते थे।।
पास रहा क्या शेष, मृत्यु-शर से जब बिद्ध, विदेह हुए।
सोच रहें होंगे, जब रहे न प्राण, कर रही दुनिया याद।।

🌼🪷🌻✍️ डॉ. रश्मि प्रियदर्शनी
(सातवें काव्य संग्रह ‘है हमें जाना कहाँ’ में संकलित)