लोक आस्था का महाकेंद्र बना केसपा के माँ तारा देवी मंदिर- हिमांशु शेखर
विश्वनाथ आनंद ।
टिकारी (गया ) – नवरात्र पूजा नारी शक्ति का प्रतीक है। नवरात्र के दौरान माता के विभिन्न शक्ति रूपों की पूजा – अर्चना किया जाता है।नवरात्र हमारे जीवन में प्रकृति का संदेश लेकर आती है। नवरात्र हमें वर्षा ऋतु के समापन एवं शरद ऋतु के आगमन का संदेश देती है। इस वर्ष मानसून अच्छी रही है l खेतों में धान की फसल लहलहा रही है l टिकारी क्षेत्र को धान का कटोरा कहा जाता है, इसलिए इस बार नवरात्र की उल्लास अधिक देखी जा रही है l टिकारी प्रखंड अंतर्गत केसपा ग्राम में स्थित माँ तारा देवी मंदिर लोकआस्था का महाकेंद्र है l
महिमामयी भूमि भारत वर्ष में समय-समय पर ऐसे महात्माओं का अवतरण हुआ है, जिन्होंने विश्व बंधुत्व और वसुधैव कुटुंबकम की भावना से ओतप्रोत होकर न सिर्फ भारतीय आदर्शों का पूरी इमानदारी से अनुपालन किया, बल्कि जन कल्याण हेतु अनेकों देव स्थलों की स्थापना भी किया है। ऐसे ही एक ऋषि थे महर्षि कश्यपl टिकारी से लगभग 11 किलोमीटर उत्तर लोक आस्था का महाकेंद्र माँ तारा देवी मंदिर के बिल्कुल पास कश्यप मुनि के आश्रम का उल्लेख मिलता है, जो दुतलीय था। नीचे का कक्ष जमीन के अंदर था,में साधना कक्ष और ऊपर निवास कक्ष था। ज्ञात होता है कि कश्यप संहिता की रचना कश्यप मुनि ने इसी स्थान पर किया था, जिसकी उपयोगिता आज भी आयुर्वेद जगत में खूब है। माता सरस्वती को इस धराधाम पर लाने का श्रेय कश्यप मुनि को जाता हैlगया जिले के टिकारी प्रखंड अंतगर्त केसपा गाँव मे स्थित माँ तारा देवी मंदिर लोक आस्था का महाकेन्द्र है। यह मंदिर धार्मिक और लोक आस्था का शक्तिपीठ माना जाता है।कहा जाता है कि महर्षि कश्यप मुनि के द्वारा ही माँ तारा देवी का मंदिर बनवाया गया था।. आज भी उसी पुराना मंदिर में माँ तारा देवी विराजमान है। बताते चलें कि माँ तारा देवी की उत्पत्ति-
जब देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन प्रारंभ किया और भगवान कच्छप के एक लाख योजन चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूमने लगा,तब सबसे पहले समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला। उस विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे, उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी और मूर्क्षित होने लगे थे। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना किया। उनकी प्रार्थना पर महादेव जी उस विष को हथेली पर रख कर जन कल्याण हेतु पी गये, किन्तु उन्होंने उस विष को कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उस विष के प्रभाव से शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया और वह अर्ध निद्रा में चले गए। भगवान शिव की अवस्था को देखकर पुरे जगत में चारों ओर हाहाकार मच गया , तभी माँ तारा प्रकट हुईं,एवं एक छोटे बालक की तरह महादेव को गोद में उठा लिया। फिर माँ तारा ने महादेव को अपना दूध पिलाया। दूध पीते ही महादेव की अर्ध निद्रा टूट गई और महादेव ने माँ तारा को प्रणाम किया। इस तरह माँ तारा देवी महादेव शिव शंकर की माँ हो गईं,तभी से तीनों लोकों में माँ तारा देवी की पूजा आरंभ हो गई।मंदिर में लिखे लिपि को आज तक नहीं पढ़ा जाना -माँ तारा देवी की मूर्ति पर किसी लिपि में बहुत कुछ लिखा हुआ है, पर इसे आजतक नहीं पढ़ा जा सका है। मंदिर की दीवारें पांच फीट से अधिक चौड़ी हैं। इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु शेखर ने मीडिया से खास बातचीत के दौरान कहा कि मंदिर की बनावट-कच्ची मिट्टी और गदहिया ईट से निर्मित मंदिर के गर्भ गृह की दीवार पांच फीट मोटी है। गर्भ गृह की सुन्दर नक्काशिया मंदिर में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। गर्भ गृह में विराजमान माँ तारा देवी की वरद हस्त मुद्रा में उत्तर विमुख आठ फीट उंची आदमकद प्रतिमा काले पत्थर की बनी हुई है। माँ तारा देवी के दोनों ओर दो योगिनी खड़ी है। मंदिर के चारों ओर एक बड़ा चबूतरा हैlमंदिर की लोकप्रियता-
आश्विन में शारदीय नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालुओं की अपार भीड़ जुटती है । श्रद्धालुगण नौ दिनों तक मंदिर परिसर में रहकर नवरात्र का पाठ करते हैं। उस दौरान श्रद्धालुगण अखण्ड दीप जलाते हैं, जो नौ दिनों तक अनवरत जलते रहता है। उन्होंने आगे कहा कि हवनकुंड-
मंदिर परिसर में एक त्रिभुजाकार विशाल हवन कुण्ड है, जिसमें सालों भर आहुति डाली जाती है। माँ तारा का यह हवनकुंड कभी नहीं भरता। इस हवनकुंड से आज तक कभी राख कभी निकाली गई है। आज के वैज्ञानिक युग में यह हवन कुंड अपने आप में कई अलौकिक रहस्य को छुपाए हुए है।नवरात्र के अवसर पर आस्था और विश्वास का केन्द्र माना जाने वाली माँ तारा देवी के दर्शन हेतु श्रद्धालुओं की अपार भीड़ लगी रहती है।