आरोग्य का महापर्व शरद पूर्णिमा का क्या है पौराणिक महत्व,पं मंगल पाण्डेय
संतोष कुमार ।
प्रखण्ड क्षेत्र के लोगों में शरद पूर्णिमा को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां फैली हुई है।भ्रांतियों को दूर करने को लेकर मां अम्बे ज्योतिष केन्द्र के ज्योतिषाचार्य पंडित मंगल पाण्डेय बताते हैं कि आरोग्य का महापर्व शरद पूर्णिमा का अत्यंत महत्व है।पाण्डेय जी के अनुसार आज शनिवार को आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा या आश्विन पूर्णिमा कहते हैं।इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस पूर्णिमा में भगवान श्रीविष्णु के साथ मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।पंडित जी कहते हैं कि इस बार यह पूर्णिमा 28 अक्टूबर 2023 को मनाया जा रहा है। ऐसा भी कहा जाता है कि आज के दिन मां लक्ष्मी रात में धरती पर विचरण करती हैं।इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा का नाम दिया गया है।इस दिन खासतौर पर चावल की खीर बनाकर चंद्रमा के नीचे रखी जाती है।ऐसा कहा जाता है कि इस दिन अमृतवर्षा होती है।
इसलिए चंद्रमा के नीचे रखी खीर खाने से कई प्रकार की परेशानियां खत्म होती हैं। बंगाली समुदाय में कोजागरी लोक्खी पूजा के दिन दुर्गापूजा वाले स्थान पर मां लक्ष्मी की विशेष रूप से प्रतिमा स्थापित की जाती है और उनकी पूजा की जाती है।इस बार सूतक काल 28 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 05 मिनट से प्रारंभ होगा एवं ग्रहण का समय 29 अक्टूबर को रात 01 बजकर 05 मिनट से 02 बजकर 24 मिनट तक मोक्ष है।आश्विन मास की यह पूर्णिमा धार्मिक दृष्टि से खास महत्व वाली है।मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात ऐरावत पर बैठ कर देवराज इन्द्र महालक्ष्मी के साथ धरती पर आते हैं और देखते हैं कि कौन जाग रहा है।जो जाग रहा होता है और उनका स्मरण कर रहा होता है, उसे ही लक्ष्मी और इन्द्र की कृपा प्राप्त होती है।श्रीकृष्ण-राधा के साथ समस्त प्राणियों को शरद पूर्णिमा का बेसब्री से इंतजार होता है।क्या देवता, क्या मनुष्य, क्या पशु-पक्षी, इस मौके पर सभी साथ नृत्य कर रहे होते हैं, मधुर संगीत बज रहा होता है।चंद्र देव पूरी 16 कलाओं के साथ इस रात सभी लोकों को तृप्त करते हैं।आकाश में एकक्षत्र राज होता है 27 नक्षत्र उनकी पत्नियां हैं- रोहिणी,कृतिका रातभर उनकी मुस्कराहट संगीतमय नृत्य करती हैं।जड़-चेतन, सब के सब मंत्रमुग्ध होते हैं।रात होने पर चंद्र देव ने अपना जादू चलाते हैं और उधर से बांसुरी की मनमोहक तान मन को छू लेती है।इस महारास का श्रीमद्भागवत में मनमोहक वर्णन भी है।इस दिन को रास पूर्णिमा और कौमुदी महोत्सव भी कहते हैं।महारास के अलावा इस पूर्णिमा का अन्य धार्मिक महत्व भी है,जैसे शरद पूर्णिमा में रात को गाय के दूध से बनी खीर या केवल दूध छत पर रखने का प्रचलन है।ऐसी मान्यता है कि चंद्र देव के द्वारा बरसायी जा रही अमृत की बूंदें खीर या दूध को अमृत से भर देती है।इस खीर में गाय का घी भी मिलाया जाता है।
इस रात मध्य आकाश में स्थित चंद्रमा की पूजा करने का विधान भी है,जिसमें उन्हें पूजा के अन्त में अर्ध्य भी दिया जाता है।भोग भी भगवान को इसी मध्य रात्रि में लगाया जाता है।इसे परिवार के बीच में बांटकर खाया जाता है. सुबह स्नान-ध्यान-पूजा पाठ करने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।लक्ष्मी जी के भाई चंद्रमा इस रात पूजा-पाठ करने वालों को शीघ्रता से फल देते हैं।अगर शरीर साथ दे, तो अपने इष्टदेवता का उपवास जरूर करें।इस दिन की पूजा में कुलदेवी या कुलदेवता के साथ श्रीगणेश और चंद्रदेव की पूजा बहुत जरूरी मानी जाती है।