गया ,टिकारी एवं औरंगाबाद में मुस्लिम समुदाय कि लोगों ने ईद उल अजहा अर्थात बकरीद का मनाया महापर्व

विश्वनाथ आनंद ।
गया( बिहार)- गया मगध प्रक्षेत्र के गया ,जहानाबाद ,औरंगाबाद नवादा , टिकारी, ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ईद उल अजहा अर्थात बकरीद के महापर्व मस्जिद में नमाज अदा करने के उपरांत एक दूसरे को गले लगाकर मुबारकबाद देते हुए मनाया. इस संबंध में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मीडिया से खास बातचीत के दौरान कहा कि बकरीद का महापर्व मानव विकास के इतिहास के अवलोकन से पता चलता है कि दुनिया में जितने भी मजहब हैं, सभी में कुर्बानी (बलि) की प्रथा किसी न किसी रूप में प्रचलित है.जब मनुष्य जंगलों और विराने में जीवन व्यतीत करता था और मजहब उनके जीवन में समाहित नहीं हुआ था, तब भी अलग-अलग कबीले में कुर्बानी का चलन था.जहां तक मजहब इस्लाम में कुर्बानी का सवाल है, तो कुरान और हदीस दोनों में कुर्बानी की हिदायत दी गयी है. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने आगे कहा कि कुरान शरीफ में अल्लाह ने फरमाया है-

“फसल्लैले रब्बेका वनहर” (सूरह अलकौसर) अर्थात नमाज पढ़िये और अपने रब के लिए कुर्बानी कीजिए, हजरत पैगंबर (स०अ०) ने भी अपने आखिरी हज के खुतबे में अरफात के मैदान में फरमाया था- “ऐ लोगों हर साल हर घर वाले पर कुर्बानी जरूरी है” (तिमंजी), दरअसल, ईद-उल-अजहा जिसे आम बोलचाल में बकर-ईद कहा जाता है. इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए एक अहम त्योहार है. इसे मनाने के पीछे एक बड़ा पवित्र इतिहास है. यह इस्लाम धर्म के उद्भव के पूर्व से प्रचलित है. हजरत इब्राहीम (अ०स०) को ईश्वर ने स्वपन दिया कि अपनी सबसे अजीज चीजों की कुर्बानी दो.हजरत इब्राहीम जिन्हें खलीलुल्लाह (ईश्वर का मित्र) कहा जाता है, उन्होंने उस स्वप्न के आलोक में अपनी पसंदीदह चीजों की कुर्बानी दी लेकिन पुनः स्वपन आया कि अपनी सबसे अजीज (प्यारी) चीजों की कुर्बानी दो अब हजरत इब्राहीम के लिए परीक्षा की घड़ी थी कि उनके के लिए सबसे प्यारी चीज उनका इकलौता बेटा हजरत इस्माईल है।. सनद रहे कि हजरत इब्राहीम को अल्लाह ने बुढ़ापे (85 साल) में एकमात्र संतान हजरते हाजरा की कोख से हजरत इस्माईल का जन्म हुआ था.इसलिए यह पुत्र न केवल उनके जीवन का आखिरी सहारा था, बल्कि उनके लिए ईश्वर का वरदान भी था. अब हजरत इब्राहीम ईश्वर के इशारे की रोशनी में अपने बेटे हजरत इस्माईल को ही कुर्बान करने के लिए तैयार हो गये और जब हजरत इस्माईल की गर्दन पर तेज धारदार छुरी चलाने लगे, तो ईश्वर ने हजरत इब्राहीम के समर्पण को कबूल करते हुए हजरत इस्माईल की जगह दुम्बा (एक प्रकार का जानवर) रख दिया और इस तरह उसकी कुर्बानी हो गयी.हजरत इस्माईल सही-सलामत जीवित रहे.इस्लाम धर्म में हजरत इब्राहीम की इसी सुन्नत की अदायगी के लिए ईद-उल-अजहा का त्योहार मानते हैं. दरअसल, ईद-उल-अजहा का संदेश यह है कि मनुष्य ईश्वर की कृति है और इसके पास जो कुछ भी धन-दौलत है, वे सभी ईश्वर की देन हैं. इसलिए इंसान को हमेशा अल्लाह के प्रति समर्पित रहना चाहिए, क्योंकि अल्लाह को बंदे का समर्पण ही सबसे अधिक पसंद है और यहीं सबसे बड़ी इबादत है. हालांकि प्रशासन ने बकरीद के महापर्व को देखते हुए चौक चौराहों पर सुरक्षा बल की तैनाती की है . वहीं कई स्थानों पर पुलिस को गस्ती लगाते हुए भी देखा गया. मुस्लिम समुदाय के लोगों ने समय के अनुसार जामा मस्जिद सहित अन्य स्थानों के मस्जिदों में नवाज अदा।