होनहार बिरवान के होत चीकने पात

संतोष कुमार ।

मुंगेर,बारह वर्ष की आयु में, जब बच्चे परियों की कहानी का आनंद लेते हैं, डाक्टर प्रफुल्लचन्द्र राय को गैलीलियो और सर आइजक न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों की जीवनियां पढ़ने का शौक था। विज्ञान से इसी लगाव के कारण एफ.ए. के पाठ्यक्रम में भी डाक्टर प्रफुल्लचन्द्र राय का पूरा ध्यान रयासन शास्त्र के अध्ययन पर ही रहता था, जिसके गहन अध्ययन के लिए वे प्रेसीडेंसी कालेज में भी रसायन के व्याख्यान सुनने के लिए जाते रहते थे। अपनी मेहनत और अध्यवसाय के बल पर डाक्टर प्रफुल्लचन्द्र राय ने एफ.ए. के साथ ही इंग्लैण्ड के एडिनबरा विश्वविद्यालय की “गिलक्रस्ट स्कालरशिप” परीक्षा भी पास की और 1882 में वे बी.एस.सी. के छात्र बनकर एडिनबरा गए ।

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डॉ॰ राय को ‘नाइट्राइट्स का मास्टर’ कहा जाता है। उन्हें रसायन के अलाव इतिहास से बड़ा प्रेम था। फलस्वरूप, इन्होंने 10-12 वर्षो तक गहरा अध्ययन कर हिंदू रसायन का इतिहास नामक महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा, जिससे आपकी बड़ी प्रसिद्धि हुई । आचार्य राय केवल आधुनिक रसायन शास्त्र के प्रथम भारतीय प्रवक्ता (प्रोफेसर) ही नहीं थे बल्कि उन्होंने ही इस देश में रसायन उद्योग की नींव भी डाली थी। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाले उनके बहुआयामी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर महात्मा गांधी ने कहा था, “शुद्ध भारतीय परिधान में आवेष्टित इस सरल व्यक्ति को देखकर विश्वास ही नहीं होता कि वह एक महान वैज्ञानिक हो सकता है।”आचार्य राय की प्रतिभा इतनी विलक्षण थी कि उनकी आत्मकथा “लाइफ एण्ड एक्सपीरियेंसेस ऑफ बंगाली केमिस्ट” (एक बंगाली रसायनज्ञ का जीवन एवं अनुभव) के प्रकाशित होने पर अतिप्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका “नेचर” ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए लिखा था कि “लिपिबद्ध करने के लिए संभवत: प्रफुल्ल चन्द्र राय से अधिक विशिष्ट जीवन चरित्र किसी और का हो ही नहीं सकता।” डाक्टर प्रफुल्लचन्द्र राय जी की जयंती के शुभ अवसर पर उनके तैल चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धेय भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मंदिर, बेलन बाज़ार, मुंगेर के प्रधानाचार्य श्री संतोष कुमार सिंह जी ने आज वंदना सभा के पश्चात उनकीजीवनी पर प्रकाश डालते हुए में भैया/बहनों से कहीं । इस अवसर पर विद्यालय के समस्त भैया/बहन, आचार्य जी/दीदी जी उपस्थित रहें ।

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