मंदिरों का धन भगवान का सरकारों की नहीं उच्च न्यायालय का फैसला उचित- डाॅ.विवेकानंद
विश्वनाथ आनंद .
गया जी( बिहार)-भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच की आभासीय बैठक डॉ. विवेकानंद मिश्र की अध्यक्षता सम्पन्न।भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण के इस युग में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय समस्त राष्ट्र के लिए धर्म और न्याय का दीपस्तंभ सिद्ध हुआ है। उच्च न्यायालय हिमाचल के माननीय न्यायमूर्ति विवेक ठाकुर एवं न्यायमूर्ति राकेश कंठला की खंडपीठ ने यह स्पष्ट कहा कि मंदिरों में अर्पित धन देवता का है, शासन का नहीं। इस निर्णय ने देवालयों की पवित्र निधि को पुनः उसके मूल उद्देश्य — देवकार्य और लोककल्याण — के पथ पर स्थापित कर दिया है।इस विषय पर भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच की एक विशेष बैठक राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. विवेकानंद मिश्र की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बैठक में महासभा एवं मंच के जुड़े लोगों के अलावा विद्वानों, संतों, समाजसेवियों और अध्यात्म-जागृत नागरिकों ने सहभागिता की। सभा ने इस निर्णय का सर्वसम्मति से स्वागत करते हुए इसे “धर्म और शासन के मर्यादाओं के पुनर्निर्धारण का क्षण” कहा।डॉ. विवेकानंद मिश्र ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि यह निर्णय भारतीय संस्कृति की आत्मा को पुनः जागृत करने वाला है। मंदिर केवल ईंट-पत्थर का भवन नहीं, वह समाज की चेतना का केन्द्र है। देवालय वह स्थान है जहाँ से धर्म, नीति और संस्कार का प्रकाश प्रसारित होता है। मंदिरों में प्राप्त दानराशि का प्रयोग वेद, उपनिषद, योग, गुरुकुल, गौशाला, आयुर्वेद और समाजसेवा के कार्यों में होना चाहिए, न कि शासन की योजनाओं में। उन्होंने कहा कि अब समय है जब देवधन से संस्कृत विद्यापीठों, धर्मशिक्षा केन्द्रों और गुरुकुलों की स्थापना की जाए, जहाँ से बालक आत्मविज्ञान के साथ आधुनिक विज्ञान का संतुलित ज्ञान प्राप्त करें।नैकी ग्राम के आचार्य सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि यह आदेश केवल न्याय का नहीं, बल्कि धर्ममर्यादा का विधान है। देवालय का धन देवकार्य में और शासन का धन शासनकार्य में ही लगना चाहिए। जब मंदिरों की निधि से यज्ञशालाएँ, गौशालाएँ और धर्मशिक्षा केन्द्र पुनः सक्रिय होंगे, तभी भारत अपने प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त करेगा। उन्होंने कहा कि यह निर्णय राष्ट्र के आत्मबल और धर्मबल दोनों को पुनः प्रतिष्ठित करेगा।
आचार्य राधामोहन मिश्र ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि यह निर्णय भारत के सांस्कृतिक संविधान का पुनर्पाठ है।विष्णुपद मंदिर प्रबंध कलिनी समिति के अध्यक्ष शंभू बाबू विट्ठल सचिव गजाधर लाल पाठक ने कहा देवधन का उचित उपयोग सनातन धर्म, नीति और सेवा के मार्ग को पुनः सशक्त करेगा.संरक्षक शिवचरण चरण डालमिया ने कहा मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि लोककल्याण का माध्यम है। धर्मपरायण प्रसिद्ध समाजसेवी उषा डालमिया ने कहा जब देवधन से जनहित के कार्य होंगे, तभी समाज में सत्य, नीति और सदाचार की स्थापना होगी.भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच के अलावे विभिन्न सामाजिक संगठनों से अनेक विद्वान, संत, चिकित्सक, अधिवक्ता और समाजसेवी सम्मिलित हुए। प्रमुख रूप से स्वामी सत्यानंद गिरी, राघवाचार्य मठाधीश्वर देवघाट के स्वामी व्यंकटेश प्रपन्नाचार्ज जी महाराज, अखिल भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य पं. भरत भूषण पाण्डेय, डॉ. बी.एन. पांडे, डॉ. विनोद कुमार सिंह, डॉ. ज्ञानेश भारद्वाज, ज्योति मिश्रा, स्वामी सुमन गिरि, पंडित अजय मिश्रा, समाजसेवी हरिनारायण त्रिपाठी, शंभू गुर्दा, अमरनाथ पांडेय, आचार्य अरुण पाठक, पंडित विनयकांत मिश्रा, मिश्र, डॉक्टर मंटू मिश्रा, आचार्य अभय मिश्र, पंडित बालमुकुंद मिश्रा, आचार्य सुनील पाठक, डॉ दिनेश सिंह ,डॉ. रविन्द्र कुमार, देवेंद्र नाथ मिश्रा, रंजीत पाठक, ऋषिकेश गुर्दा, विश्वजीत चक्रवर्ती, संकरी अपराजिता चक्रवर्ती, अनंत अच्युत मराठे, पवन मिश्र, रंजना पांडे, अधिवक्ता सुरेन्द्र पाठक, आचार्य महेश मिश्र, ज्ञानेश पांडे, हरिद्वार मिश्रा शारदा साहिबा, राजेश त्रिपाठी, सत्येंद्र द्विवेदी, चंद्रमणि पाठक, पं. दामोदर मिश्र, डॉ. अजय कुमार मिश्र, राजीव नयन पांडेय, किरण पाठक, बृजेश राय, जयदेव जी, दीपक पाठक, मनीष मिश्रा, नीरज वर्मा, पुष्पा गुप्ता, कविता राऊत, फूल कुमारी यादव, चांदनी कुमारी,रीता पाठक, श्वेता पांडेय, नीलम कुमारी, शोभा देवी, प्रतिमा कुमारी सहित अनेक गणमान्य लोगों ने अपने विचार प्रकट किये।सभा के समापन पर यह सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का यह आद…