कांग्रेस कार्यालय में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान की जयंती मनाई गई
Dhiraj.
गया जी।गया जिला कांग्रेस कार्यालय राजेन्द्र आश्रम मे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान की जयंती मनाई गई,सबसे पहले इनके तैल चित्र पर पुष्प अर्पित किया गया,इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला कांग्रेस महिला प्रकोष्ठ के पूर्व जिला प्रभारी डॉ कुमारी गीता पासवान की अध्यक्षता मे जयंती मनाई गयी, शास्त्री जी के जीवनी पर अपने अपने विचार दिये,एक ऐसा मुख्यमंत्री जिसे लोग उनकी इमानदारी के लिए याद करते है, जिसके बारे में लोग अपने बच्चों को बताते हुए आज भी कहते हैं कि अगर सच में कुछ बनना है तो भोला पासवान की तरह बनो लेकिन आज के समाज में अगर हम अपने घर में किसी राजनेता का नाम ले लेते हैं या फिर तारीफ कर देते हैं तो लोग कहते हैं कि क्या कह रहे हो ? दरअसल आज जिस व्यक्ति के बारे में बता रहे हैं वो तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं,एक ऐसा नेता जिसकी छबि आज के राजनेताओं से बिलकुल उलटी थी,सादगी ऐसी थी कि बड़ी–बड़ी ऑफिसियल मीटिंग्स भी एक पेड़ के नीचे कर लिया करते थे,मुख्यमंत्री ऐसा कि जब सोने की बात आती थी तो एक झोपड़ी में सो लेते थे,लेकिन अपने कर्तव्यों के साथ कभी समझौता नहीं करते थे |
आज हम बात करने जा रहे हैं बिहार के तीन बार के मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री के व्यक्तित्व के बारे में मुख्यमंत्री का सफ़र बैलगाड़ी से देश को पहले दलित मुख्यमंत्री मिलने की तारीख थी 22 मार्च 1968 राज्य था बिहार और मुख्यमंत्री का नाम था भोला पासवान शास्त्री राजनीतिक सियासत कि शुरुआत तो उन्होंने देश के सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस से की थी लेकिन साल 1967 में हुए विधानसभा चुनाव में हारने और फिर कांग्रेस का बाहर से समर्थन देकर वीपी मंडल को मुख्यमंत्री बनाने को लेकर जो सियासी ड्रामा हुआ, उससे कांग्रेस टूट गई विनोदानंद झा के नेतृत्व में भोला पासवान शास्त्री समेत कुल विधायकों ने पार्टी तोड़कर नई पार्टी बनाई और नाम रखा लोकतांत्रिक कांग्रेस संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, जन क्रांति दल, जनसंघ और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से भोला पासवान शास्त्री 22 मार्च, 1968 को बिहार के मुख्यमंत्री और देश के पहले दलित मुख्यमंत्री बने,आज के दौर में मुख्यमंत्री का ओहदा कितना बड़ा होता है इसका अंदाजा आप टीवी चैनलों मुख्यमंत्री को देख कर लगा सकते हैं या फिर आप अगर कभी उनसे रूबरू हुए हों लेकिन इन सब से अलग थे ये मुख्यमंत्री जो मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्हें अपने गांव जाने के लिए बैलगाड़ी का ही सहारा लेते थे क्योंकि गांव में सड़क तक नहीं थी उनका गांव पूर्णिया जिले में पड़ता था, जिसका नाम था बैरगाछी भोला पासवान शास्त्री की खुद की कोई औलाद नहीं थी तो उनके भतीजे विरंची पासवान ने उनसे कहा कि वो अपने गांव में एक सड़क बनवा दें ताकि लोगों को आने-जाने में सुविधा हो सके,भोला पासवान शास्त्री ने कहा था – अगर मैं अपने गांव में सड़क बनवा दूंगा तो मेरे ऊपर एक दाग लग जाएगा, 3 महीने तक चला पहला कार्यकाल हालांकि भोला पासवान शास्त्री जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तो महज तीन महीने तक ही अपना कार्यकाल संभाल सके क्योंकि सिर्फ 17 विधायकों वाली पार्टी के एक नेता का लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहना मुश्किल ही था और यही हुआ जून महीना खत्म होते-होते उन्होंने इस्तीफा दे दिया और फिर 29 जून 1968 को बिहार में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया,फरवरी 1969 में बिहार में मिडिल-टर्म इलेक्शन हुए और बिहार के सियासी इतिहास में ये पहली बार था, मिडिल-टर्म इलेक्शन करवाए जा रहे थे,इस मिडिल-टर्म इलेक्शन के बाद भी किसी दल को बहुमत नहीं मिला,कांग्रेस भले ही सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन बहुमत नहीं था तो उसने दूसरी पार्टियों और निर्दलियों के सहारे सरदार हरिहर सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया लेकिन सरकार नहीं ही चलनी थी तो नहीं चली | सरदार हरिहर सिंह के इस्तीफे के बाद फिर से भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री बने और फिर से 13 दिन के अंदर ही उन्हें फिर से इस्तीफ़ा देना पड़ गया और एक बार फिर वही हुआ जो साल 1968 में हुआ था | प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया लेकिन बस फर्क इतना था कि इस बार विधानसभा भंग नहीं हुई थी तो चुनाव की नौबत नहीं आई थी,कांग्रेस ने जैसे-तैसे कोशिश करके दरोगा प्रसाद राय को मुख्यमंत्री बना दिया उसके बाद भी सरकार नहीं चली तो फिर गैर कांग्रेसी दलों ने कर्पूरी ठाकुर को मुख्यमंत्री बना दिया,ये सरकार भी नहीं चली और फिर से भोला पासवान शास्त्री के नेतृत्व में लोकतांत्रिक कांग्रेस की सरकार बनी क्योंकि तब तक…