शिक्षकेत्तर कर्मियों ने कार्य बहिष्कार कर किया विरोध प्रदर्शन
चंद्रमोहन चौधरी ।
एएस कालेज बिक्रमगंज के शिक्षकेतर कर्मियों ने अपने काम पर उपस्थित रह कर महाविद्यालय के कार्यों में असहयोग किया और लाल पट्टी बाँधकर सरकार और विश्विद्यालय की उदासीनता के प्रति विरोध प्रकट किया। ज्ञातव्य हो कि माह जून 2023 से अगस्त तक लगातार तीन माह से कर्मियों को वेतन भुगतान नहीं हुआ है। कर्मी घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। लेकिन किसी को भी कोई ख्याल नहीं है। भयंकर महंगाई के दौर में कर्मी किसी तरह कर्ज लेकर अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मजबूर हैं। कई कर्मियों ने अपने वेतन के आधार पर निजी कार्यों के लिए बैंकों से कर्ज लिए हैं। समय पर कर्ज का किस्त जमा नहीं होने के कारण उसका सूद बढ़ते जा रहा है। कर्मियों का बैंक खाता सरकार और विश्विद्यालय की लापरवाही के कारण एनपीए होने का भय सता रहा है। कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह ने कहा कि बैंक वाले भी बार बार फोन करके इस बात के लिए धमकी दे रहे हैं। स्कूल वाले बच्चों का स्कूल फीस जमा नहीं किए जाने के कारण नाम काटने की धमकी दे रहे हैं। अगर किसी के घर में कोई अचानक बीमार पड़ जाए तो पैसे और दवा के अभाव में उसकी मौत हो जाएगी। बार बार पत्राचार करने के बाद भी किसी के कान पर जू तक नहीं रहा है। सरकार के बड़े शिक्षा पदाधिकारी के के पाठक साहब रोज सुबह नए फरमान जारी कर रहे हैं। रोज मोनिटरिंग हो रही है कि कौन आया कौन नहीं। इसकी जानकारी रोज देनी है। हार्ड कॉपी में और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी। लेकिन इसकी चिंता उन्हें भी नहीं है कि कर्मियों को तीन माह से वेतन भुगतान नहीं हुआ है और वे किस तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। वे राजभवन से अपनी शक्ति को लेकर लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार भी कान में तेल डालकर सोई हुई है। सचिव अक्षय कुमार प्यारे ने कहा कि सरकार और विश्विद्यालय को सिर्फ काम चाहिए। लेकिन कर्मियों को वेतन मिले या नहीं इसकी चिंता नहीं है। अगर कोई कर्मी एक दिन बिना किसी सूचना के अनुपस्थित रहे तो उसका वेतन काट देने आदेश जारी हुआ है। लेकिन कर्मी लगातार काम करें और तीन माह से उन्हें वेतन भुगतान नहीं हुआ तो इसके कारण किसका वेतन कटना चाहिए। कर्मियों का कहना है कि हमारे पास असहयोग करने, प्रदर्शन करने, काला लाल बिल्ला लगाकर विरोध करने और अंत में हड़ताल पर जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। हड़ताल करने पर तो सरकार और विश्विद्यालय अधिकारी वैसे ख़फ़ा हो जाते हैं जैसे कि लाल कपड़ा देखकर सांड बिदक जाता है। कुछ लोग छात्र हित के नाम पर हड़ताल के विरुद्ध कोर्ट में चले जाते हैं। कोर्ट भी अपना फैसला इसी नाम पर सुना देता है। हम आखिर करें तो क्या करें। क्या सपरिवार आत्मदाह कर लें या और कोई रास्ता है। कोर्ट भी काम नहीं तो वेतन नहीं का आदेश दे देता है। लेकिन काम करने के बाद भी वेतन भुगतान नहीं होता इसके लिए दोषी लोगों के विरुद्ध कार्रवाई का आदेश क्यों नहीं देता। कर्मियों ने निर्णय लिया कि अगर तीन चार दिन बाद भी भुगतान नहीं हुआ तो वे भिक्षाटन का कार्यक्रम भी करेंगे। गली गली और सड़कों पर घूमकर भिक्षा मांगेंगे। असहयोग कार्यक्रम में सभी कर्मियों ने हिस्सा लिया।