पौराणिक परंपरा ही शाश्वत धर्म का आधार -पिंडदान में ऑनलाइन व्यवस्था का सर्वत्र विरोध- डॉक्टर विवेकानंद मिश्रा.

विश्वनाथ आनंद
गया जी (बिहार )- गया जी महात्मा भूमि, जहाँ स्वयं भगवान श्रीराम ने माता-पिता के निमित्त फल्गु तट पर पिंडदान कर श्राद्ध विधि सम्पन्न की थी, वहाँ पितृपक्ष महापर्व का विशेष महात्म्य वर्णित है। शास्त्रों में स्पष्ट है कि पितृकृत्य का संपूर्ण फल तभी प्राप्त होता है, जब श्रद्धालु स्वयं देहपूर्वक उपस्थित होकर तर्पण, फल्गु स्नान और पिंडदान संपन्न करे।इसी दिव्य परंपरा को ध्यान में रखते हुए गया जी धाम के विद्वज्जन, आचार्यगण तथा सामाजिक संगठन ऑनलाइन पिंडदान और तर्पण जैसी कृत्रिम व्यवस्थाओं का घोर विरोध कर रहे हैं। नगर निगम और प्रशासन द्वारा प्रारम्भ की गयी इस व्यवस्था को अधार्मिक एवं परंपराविरोधी बताते हुए पंडा समाज, तीर्थ-पुरोहितगण और ब्राह्मण महासभाओं ने अस्वीकार कर दिया है।आज इस धर्मसंघर्ष को प्रथम आवाज उठाने वाले विष्णु पद मंदिर कार्यकारिणी समिति के अध्यक्ष शंभू लाल विट्ठल, सचिव गजाधर लाल पाठक, महेश लाल गुपुत, मणिलाल बारिक, राजन सिजवार, बच्चू लाल चौधरी,अमरनाथ धोकड़ी, कृष्ण लाल टईया एवं भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासाभा तथा कौटिल्य मंच से जुड़े लोगों को विद्वज्जनों, बुद्धिजीवियों और सनातनधर्मी जनमानस का भी व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ। विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति, कौटिल्य मंच, भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा ने इसे तत्काल निरस्त करने की मांग रखी है।विभिन्न सामाजिक संगठनओं से जुड़े भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा एवं कौटिल्य मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर विवेकानंद मिश्र ने कहा है की पितृपक्ष केवल कर्मकाण्ड नहीं, अपितु ऋषि-ऋण, देव-ऋण और पितृ-ऋण की अद्भुत श्रद्धा, समर्पण तथा साधना है। यह आभासी माध्यमों से नहीं, बल्कि आत्मा और शरीर की संपूर्ण उपस्थिति से सम्पन्न होता है। डॉक्टर मिश्र ने कहा ऑनलाइन पिंडदान धर्म का अपमान है। जैसे दीपक का प्रकाश केवल सामने जलाकर ही अंधकार को दूर करता है, वैसे ही पिंडदान भी गयाधाम में श्रद्धा, समर्पण और आचरण से ही सिद्ध होता है, न कि यंत्रों के माध्यम से।सामाजिक चिंतक एवं ख्यातिप्राप्त आयुर्वेदाचार्य आचार्य सच्चिदानंद मिश्र ने कहा की शास्त्र स्पष्ट करते हैं कि पितरों को तृप्त करने हेतु गयाश्रयण अनिवार्य है। गयाधाम की धूल, फल्गु की रज और विष्णुपद का दर्शन ही श्राद्ध का पूर्णत्व है। जो कार्य श्रीराम, माता सीता और स्वयं भगवती अन्नपूर्णा ने सदेह सम्पन्न किया, वही यदि आज कम्प्यूटर और मोबाइल के माध्यम से किया जाएगा तो वह केवल प्रहसन रहेगा, धर्म नहीं। प्रशासन को चाहिए कि धर्म की पवित्रता बनाए रखने में सहयोगी बने, न कि अवरोधक।सम्मानित साहित्यकार और धर्म चिंतक आचार्य राधा मोहन मिश्र माधव, ने कहा की पितृकर्म केवल अनुष्ठान नहीं, यह पूर्वजों से जुड़ने की वह कड़ी है, जो परिवार और समाज की आत्मा को जीवित रखती है।भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासाभा एवं कौटिल्य मंच के वरिष्ठ सदस्य संदीप मिश्रा ने कहा गयाधाम में पिंडदान के समय जो आध्यात्मिक तरंग उत्पन्न होती है, वह किसी यांत्रिक साधन द्वारा अनुभव ही नहीं की जा सकती।
स्वामी सुमन गिरि ने कहा ऑनलाइन व्यवस्था से न श्रद्धा उत्पन्न होगी, न पितरों की तृप्ति।
ज्ञानेश भारद्वाज ने कहा यह परंपराओं को विद्रूप करने का प्रयास है, जिसका हम सभी को संगठित होकर विरोध करना ही होगा।सनातन धर्म के प्रति आस्था रखने वाले जिन जागरूक बुद्धिजीवियों ने ऑनलाइन पिंडदान का विरोध किया है इनमें आचार्य बल्लभ जी महाराज, स्वामी वेंकटेश प्रपन्ना चार्ज, प्रासिद्ध व्यवसायी, शिवचरण डालमिया, धर्मेन्द्र पाठक, ऑल इंडिया जूलॉजी साइंस कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर बी एन पांडेय, प्रासिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर उमेश चंद्र मिश्र शिव,गजाधर लाल कटरियार, प्रासिद्ध डॉक्टर दिनेश सिंह, डॉक्टर और रविंद्र कुमार, ज्योतिष शिक्षा एवं शोध संस्थान के निदेशक डॉक्टर ज्ञानेश भारद्वाज प्रोफेसर अशोक कुमार,मनीष कुमार, डॉ मंटु मिश्र, प्रोफेसर,आचार्य अरुण मिश्र मधुप, प्रोफेसर मनोज कुमार मिश्र, आचार्य सुनील पाठक, आचार्य अभय पाठक, पंडित विनयकांत मिश्र, पंडित अजय मिश्र, अमरनाथ पांडे,राकेश पांडेय,किरण पाठक, डॉक्टर पी पी मिश्रा, आनंद कुमार सिंह अधिवक्ता, दीपक पाठक अधिवक्ता, अच्युत मराठे अधिवक्ता, मनीष कुमार अधिवक्ता, पाठक अधिवक्ता, उत्तम पाठक अधिवक्ता, एस के पाठक अधिवक्ता, विश्वजित चक्रवर्ती अधिवक्ता, विजय कुमार पांडेय अधिवक्ता, पुनम कुमारी अधिवक्ता, सोनी कुमारी अधिवक्ता, महेश मिश्र, पंडित रामानंद मिश्र, भारतीय राष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा के प्रदेश सचिव प्रोफेसर सुनील कुमार मिश्र, अरुण कुमार ओझा, हरी नारायण त्रिपाठी सतेन्द्र दूबे, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामकृष्ण त्रिवेदी, अखिलेश पांडेय, डॉक्टर छोटे बाबू, ऋषिकेश गुर्दा, डॉक्टर पूजा आनंद, डॉक्टर गोविंदेश्वर मिश्र, प्रोफेसर संगीता जी, प्रोफेसर गीतापासवान,पुरुषोत्तम पाठक, शंभू गिरि, कौटिल्य मंच के प्रदेश सचिव पवन मिश्रा, महासभा एवं मंच के वरिष्ठ पदाधिकारी रंजीत पाठक, नीरज वर्मा, अंबिका रानी, संगीता कुमारी,मनीष मिश्र, पर्वती देवी,फूल कुमारी, पुनम कुमारी, चंदनी देवी, कविता राऊत, प्रोफेसर रीना सिंह, चंद्रभूषण मिश्र, सुनीता देवी रजनी चावला, ऊषा ज्योति मिश्रा, रीता पाठक,आचार्य अरुण मिश्र, शुभम गौड, मांडवी शंभू गुर्दा, का नाम मुख्य रूप से शामिल है.